Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 292 ज्ञानानन्द श्रावकाचार वर्णन करने में कौन ऐसा बुद्धिमान पंडित है जिसे असमर्थता न भासित होती हो ? किस-किस के पांवों तले ये जीव अपना मस्तक तथा आंखें झुकाते हैं ? बहुत झुकाते हैं, यह मोह का ही माहात्म्य है / ___ मोह से यह जीव अनादि काल से संसार में भ्रमण कर रहा है तथा नरक, निगोद आदि के दुःख सह रहा है / उन दु:खों को वर्णन करने में गणधर देव भी समर्थ नहीं हैं / अतः परमदयालु श्री गुरु कहते हैं - हे वत्स ! हे पुत्र ! यदि तू अपना हित चाहता है तथा महासुखी होना चाहता है तो मिथ्यात्व का सेवन छोड / बहुत कहने से क्या ? जो विचक्षण पुरुष हैं वे तो थोडे में ही समझ जाते हैं तथा जो ढीठ हैं उन्हें कितना भी कहो वे नहीं मानते / यह बात न्याय की ही है / जीव की जैसी होनहार होती है वैसी ही उसे बुद्धि उत्पन्न होती है / इसप्रकार संक्षेप में कुदेवों का वर्णन किया। कुशास्त्र व कुधर्म का वर्णन आगे कुशास्त्र तथा कुधर्म का वर्णन करते हैं / कुशास्त्र किसे कहते हैं ? जिनमें हिंसा, झूठ, चोरी कुशील आदि में अथवा परिग्रह रखने की इच्छा में धर्म बताया गया हो तथा दुष्ट जीवों को अथवा बैरियों को सजा देना, भक्तों की सहायता करना, राग-द्वेष रूप प्रवर्तन करना, अपनी प्रशंसा तथा दूसरों की निंदा करने का वर्णन (उपदेश) हो वे कुशास्त्र हैं। पांचों इन्द्रियों के पोषण में धर्म समझना; तलाब, कुये, बावडी आदि खुदाने से, इनमें नहाने से तथा यज्ञ करने से धर्म मानता हो तथा इनके (ऐसा ) करने कराने का जिनमें वर्णन हो, पुष्कर, प्रयाग आदि तीर्थ कराने तथा विषयों में आसक्त नाना प्रकार के कुगुरुओं को पूजने में धर्म मानने का वर्णन हो उन्हें कुशास्त्र जानना / दस प्रकार के खासे दान का ब्यौरा - स्त्री, दास, दासी का दान करना, हाथी, घोडा, ऊंट, बैल, भैंसा, गाय, जमीन, गांव, हवेली आदि के दान रूप कुदान करना, छुरी, कटारी, बरछी, तलवार, लाठी आदि शस्त्र