Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 278 ज्ञानानन्द श्रावकाचार केवलज्ञान संयुक्त होता हुआ महा अनन्त सुख का भोक्ता होता है तथा तीन काल सम्बन्धी सारे चराचर पदार्थों को एक समय में युगपत जानता है / दो परमाणु आदि के स्कंधों को अशुद्ध पुद्गल कहा जाता है तथा अकेले एक परमाणु को शुद्ध पुद्गल द्रव्य कहते हैं / तीन लोक हैं वे पवन के वातवलयों के आधार हैं तथा धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य का भी सहाय (निमित्त) है / तीन लोक के परमाणुओं का एक पुद्गल स्कंध महास्कंध नाम प्राप्त करता है, उसी में तीन लोक जुडे हैं / उस महास्कंध में कुछ (पुद्गल परमाणु) सूक्ष्म रूप हैं तथा कुछ बादर रूप हैं। तीन लोक का ऐसा स्वरूप जानना / ___ यहां कोई कहे कि इतना कारण तो कहा, पर तीन लोक का बोध (अधर ठहरना) कैसे हो ? उसे समझाते हैं - हे भाई! ये ज्योतिष देवों के असंख्यात विमान (तारे, नक्षत्र आदि) अधर कैसे ठहरे दिखते हैं तथा बडे-बडे पक्षी आकाश में उडते देखे जाते हैं। पतंग आदि अन्य भी आकाश में हवा के कारण अधर में उडते देखे जाते हैं / यह तो सभी प्रकार हो सकता है पर वासुकि राजा आदि को तीन लोक का आधार माना जावे, वह तो संभव नहीं है / वासुकि स्वयं बिना आधार आकाश में कैसे टहरा रहा (यदि वासुकि बिना आधार आकाश में ठहरा रह सकता हैं तो लोक क्यों नहीं ठहरा रह सकता)? तथा यदि वासुकि को भी अन्य आधार पर ठहरा माना जावे, तो उसमें वासुकि का क्या कर्तव्य रहा ? अनुक्रम से परंपरा आधार का अनुक्रमपना रहा। अत: वह नियमरूप (निश्चित रूप) से संभव नहीं है। हमने जो पहले कहा था वही संभव है / इसप्रकार छहों द्रव्यों का विवरण जानना / इन छहों द्रव्यों (के अनादि निधन होने) के अतिरिक्त अन्य कोई इनका कर्ता है, ऐसा मानना नहीं। ____ छहों द्रव्यों में से एक को कर्त्ता कहें वह बनता नहीं है / यह न्याय ही है, ऐसा ही अनुमान प्रमाण में आता है / अतः आज्ञा प्रधानी पुरुष से