Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 277
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार 262 को अनिष्ट रूप लगता है तथा ज्यों-ज्यों कषायों का निमित्त मिटता जाता है त्यों-त्यों निराकुल गुण प्रकट होता जाता है तथा तब अन्यों को भी इष्ट लगता है / इसप्रकार कषायों के थोडा मिटने पर भी जब ऐसा शान्तिपूर्ण सुख प्रकट होता है, तब परमात्मा देव के तो सम्पूर्ण कषायें मिटी हैं तथा अनन्त चतुष्टय प्रकट हुआ है, तो न जाने उनको कैसा सुख प्रकटा होगा। इसप्रकार अल्प से निराकुल स्वभाव को जानने से सम्पूर्ण निराकुल स्वभाव की प्रतीति होती है / अतः शुद्ध आत्मा कैसे निराकुलित स्वभाव का होगा ? यह मुझे भली प्रकार अनुभव में आ रहा है / शिष्य पुनः प्रश्न करता है - हे प्रभो ! मुझे बाह्यआत्मा, अन्तरात्मा तथा परमात्मा के प्रकट चिन्ह कहे, उनका स्वरूप बतावें / श्री गुरू कहते हैं - जैसे किसी जन्मते बालक को तहखाने में रखा जावे तथा कुछ दिन बाद रात्रि में निकाला जाकर उससे पूछा जावे की सूर्य किस दिशा में उगता है। सूर्य का प्रकाश कैसा होता है, सूर्य का बिम्ब कैसा होता है ? तब वह कहता है कि मैं तो जानता नहीं, दिशा अथवा प्रकाश अथवा सूर्य का बिम्ब कैसा है ? ___ पुनः पूछने पर कुछ का कुछ बताता है / प्रभात होने पर पुन: उससे पूछने पर वह कहता है कि जिस ओर प्रकाश हुआ है, उस ओर पूर्व दिशा है तथा उसी ओर सूर्य है / ऐसा क्यों ? क्योंकि सूर्य के बिना प्रकाश नहीं होता, ज्यों-ज्यों सूर्य ऊपर चढता है त्यों-त्यों प्रत्यक्ष रूप से प्रकाश निर्मल होता जाता है तथा पदार्थ निर्मल प्रतिभासित होते जाते है / ___ यदि कोई उससे आकर कहे कि सूर्य दक्षिण दिशा में उगा है तो वह कदापि नहीं मानता है, कहने वाले को पागल गिनता है, क्योंकि उसे प्रत्यक्ष सूर्य का प्रकाश दिख रहा है, अत: वह कहता है मैं तुम्हारा कहा कैसे मानूं ? मुझे इसमें संदेह नहीं है, सूर्य का बिम्ब तो मुझे दिखाई दे नहीं रहा है पर प्रकाश से सूर्य का अस्तित्व निश्चित हो रहा है, अत: नियम से सूर्य उसी (पूर्व की) ओर है / ऐसी अवगाढ प्रतीति उसे हुई है। फिर सूर्य

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