Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ निर्ग्रन्थ गुरु का स्वरूप 271 पीछे सारी भेडें चलती चली जाती है / यदि आगे वाली भेड खाई अथवा कुये में गिर जावे जो पीछे वाली सर्व भेडें भी खाई, कुये में गिर पडती हैं। आगे वाली भेड सिंह व्याघ्र आदि के स्थान में जा फंसे तो पिछली भी जा फंसती हैं। इसीप्रकार संसारी जीव हैं, वे अर्थात बडे अथवा पूर्वज यदि खोटे मार्ग चले हों तो यह भी खोटे मार्ग पर चलता जाता है। यदि वे अच्छा मार्ग चले हों तो ये भी उसी प्रकार चलता है / इसको ऐसा विचार नहीं है कि अच्छा मार्ग कौन सा है तथा खोटा मार्ग कौन सा है ? ऐसा विचार हो तो खोटे मार्ग को छोडकर अच्छे मार्ग ही को ग्रहण करे / अत: एक ज्ञान ही प्रशंसनीय है, जिसमें ज्ञान विशेष हो उसे ही जगत पूजता है, उसी का सेवन करता है / यह ज्ञान है वह ही जीव का निज स्वभाव है / अत: धर्म को परीक्षा करके ही ग्रहण करना चाहिये। - .