Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 263 मोक्ष सुख का वर्णन के बिम्ब सम्पूर्ण दैदिप्यमान, महा तेज लिये प्रकट हुआ तब प्रकाश भी सम्पूर्ण प्रकट हुआ तथा पदार्थ भी जैसे थे वैसे प्रतिभासित होने लगे / तब कुछ पूछना रहा नहीं, निर्विकल्प हो गया / इसप्रकार ही दृष्टान्त के अनुसार दृष्टिान्त (सिद्धान्त) जानना। ___ वहीं कहते हैं - मिथ्यात्व अवस्था में इस पुरुष से पूछा जावे कि तू चैतन्य है, ज्ञानमयी है, तो वह कहता है, चैतन्य, ज्ञान किसे कहते हैं, मैं नहीं जानता कि मैं किस प्रकार चैतन्य ज्ञान हूं / कोई आकर ऐसा कहे कि शरीर है वही तू है अथवा सर्वज्ञ का एक अंश है, क्षण में उत्पन्न होता है, क्षण में विनशता है अथवा तू शून्य है तो वैसा ही मान लेता है / ऐसा होऊंगा, मुझे तो कुछ खबर पडती नहीं (ज्ञान है नहीं ) / यह बाह्य आत्मा का लक्षण है। पुन: कोई पुरुष गुरु का उपदेश पाकर कहते हैं - हे प्रभु ! आत्मा से कर्म कैसे बंधते हैं? ___श्री गुरु कहते हैं - जैसे एक सिंह निर्जन स्थान-जंगल में बैठा था, वहां ही अपनी सभा करते हुए आठ मंत्रवादी भी थे / सिंह ने उन मंत्रवादियों पर क्रोध किया / तब उन मंत्रवादियों ने एक-एक चुटकी धूल मंत्रित कर उस सिंह के शरीर पर डाल दी / कुछ दिन बाद एक चुटकी का निमित्त पाकर सिंह का ज्ञान कम हो गया तथा एक चुटकी से देखने की शक्ति कम हो गयी। एक चुटकी के निमित्त से शेर दुःखी हुआ, एक चुटकी का निमित्त पाकर शेर जंगल छोडकर अन्य स्थान पर चला गया / एक चुटकी का निमित्त पाकर शेर का आकार अन्य रूप हो गया। एक चुटकी के निमित्त से शेर अपने को नीचा मानने लगा तथा एक चुटकी के निमित्त से उसकी शक्ति कम हो गयी। इसीप्रकार आठ प्रकार के ज्ञानावरण आदि कर्म जीवों को राग-द्वेष कराते हैं तथा ज्ञान आदि आठ गुणों को घटाते हैं, ऐसा जानना / इसप्रकार गुरु ने शिष्य के प्रश्न का उत्तर दिया /