Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 261 मोक्ष सुख का वर्णन है तथा पीले गुण में क्षेत्र की अपेक्षा सर्व गुण भी विद्यमान हैं / क्षेत्र की अपेक्षा सारे गुण मिले हुये हैं, सब गुणों के प्रदेश एक ही हैं / स्वभाव की अपेक्षा सबका रूप अलग-अलग है, जैसे पीलेपन का स्वभाव भिन्न है, इसीप्रकार आत्मा के सम्बन्ध में भी जानना तथा अन्य द्रव्यों के सम्बन्ध में भी जानना। अनेक प्रकार की अर्थ पर्यायों का तथा व्यंजन पर्याय का यथार्थ स्वरूप शास्त्रों के अनुसार जानना उचित है / इस जीव को सुख का बढ़ना तथा घटना दो प्रकार से होता है, वह बताते हैं - जितना ज्ञान है, उतना ही सुख है / ज्ञानावरण आदि कर्मों का उदय होने पर तो सुख-दुःख दोनों का नाश होता है तथा ज्ञानावरण आदि का तो क्षयोपशम हो एवं मोह कर्म का उदय हो तब जीव को द:ख अवश्य होता है / सुख शक्ति तो आत्मा का निज गुण है, अतः सुख तो कर्म के उदय के बिना ही होता है तथा दुःख शक्ति तो कर्म के निमित्त से होती है वह औपाधिक शक्ति है, कर्म का उदय मिटने पर जाती रहती है / सुख शक्ति कर्म का उदय मिटने पर प्रकट होती है, क्योंकि वस्तु का द्रव्यत्व स्वभाव है। तब शिष्य प्रश्न करता है :- हे स्वामी ! द्रव्यकर्म तथा नोकर्म हैं, वे तो मेरे स्वभाव से भिन्न हैं यह मैने आपके प्रसाद से जाना / अब मुझे राग-द्वेष से भिन्नता दिखाईये। ___श्री गुरु कहते हैं - हे शिष्य ! तू सुन, जैसे जल का स्वभाव तो शीतल है तथा अग्नि के निमित्त से उष्ण होता है तथा उष्ण हो जाने पर अपना शीतल स्वभाव भी छोडता है। स्वयं गर्म हुआ परिणमता है, अन्य लोगों को भी आताप उत्पन्न करता है / बाद में समय पाकर ज्यों-ज्यों अग्नि का संयोग मिटता है त्यों-त्यों अपने स्वभाव के अनुसार शीतल होता है तथा अन्य को आनन्दकारी होता है / उसीप्रकार यह आत्मा कषायों के निमित्त से आकुलित होता हुआ परिणमता है / सम्पूर्ण निराकुलता गुण जाता रहता (छुप जाता) है। अन्यों