Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ मोक्ष सुख का वर्णन 265 नाना प्रकार की कषायों के द्वारा आकुलता उत्पन्न करता है / यह आकुलता कैसी है तथा इसका फल क्या है ? कोई जीव नाना प्रकार के संयम आदि गुणों से युक्त है, उसे किंचित कषाय उत्पन्न होजावे तो दीर्घकाल के संयम आदि के द्वारा संचित पुण्य नाश को प्राप्त होते हैं / जैसे अग्नि से रुई का समूह भस्म होता है वैसे ही कषाय रूप अग्नि से समस्त पुण्य रूप ईंधन भस्म हो जाता है / कषायवान पुरुष इस जगत में महानिंदा को प्राप्त होता है। ___ कषायें कैसी हैं ? करोडों स्त्रियों के सेवन से भी इनका पाप अनन्त गुणा है / इससे भी अनन्त गुणा पाप मिथ्यात्व का है / यह जीव अनादि काल से एक मिथ्यात्व के कारण ही संसार में भ्रमण कर रहा है / मिथ्यात्व से बडा उत्कृष्ट अन्य कोई पाप इस संसार में नहीं है / जिनकी बुद्धि मोह के द्वारा ठगी गयी है, ऐसे संसारी जीवों को कषाय आदि तो पाप दिखते हैं तथा मिथ्यात्व भी पाप है यह किसी को दिखता नहीं है / __शास्त्र में ऐसा कथन है कि जिसने एक मिथ्यात्व का नाश किया उस पुरुष ने सारे पापों का नाश किया तथा संसार (भ्रमण) का नाश किया / ऐसा जानकर कुदेव, कुगुरु, कुधर्म का त्याग करो। त्याग किसे कहते हैं - देव तो अरिहन्त हैं, गुरु निर्ग्रन्थ हैं अर्थात तिल-तुष मात्र परिग्रह से रहित हैं तथा धर्म है वह जिनप्रणीत दयामय कहा गया है / इनके अतिरिक्त अन्य सर्व ही को हाथ जोडकर नमस्कार तक भी नहीं करना चाहिये / प्राण जावें तो जाओ पर नमस्कार करना उचित नहीं है।