Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 171 सम्यग्चारित्र भगवान के प्रताप से (भगवान की भक्ति के कारण उपार्जित पुण्य के फल में ) यह जीव सहज ही सुखी होता है तथा मोह कर्म सहज ही गलता (नष्ट होता) है / अब इसका विशेष वर्णन करते हैं। जय, जय, आपकी जय हो, जय भगवान, जय प्रभु, जय नाथ, जय करुणानिधि, जय त्रिलोक्यनाथ, जय संसार समुद्र तारक, जय भोगों से परान्मुख, जय वीतराग, जय देवाधिदेव, जय सच्चे देव, जय सत्यवादि, जय अनुपम, जय बाधा रहित, जय सर्व तत्व प्रकाशक, जय केवलज्ञानचारित्र, जय त्रिलोक शान्त मूर्ति, जय अविनाशी, जय निरंजन, जय निर्लोभ, जय अतुल महिमा भंडार, जय अनन्त दर्शन, जय अनन्त ज्ञान, जय अनन्तवीर्य, जय अनन्त सुख से मंडित, संसार शिरोमणि, गणधर देवों तथा एक सौ इन्द्रों से पूज्य आप जयवन्त प्रवर्ते / आपकी जय हो, आपकी बहुत वृद्धि हो / जय परमेश्वर, जय सिद्ध, जय आनन्द पुंज, जय आनन्दमूर्ति, जय कल्याण पुंज, जय संसार समुद्र के पारगामी, जय भवदधि जहाज, जय मुक्ति कामिनी कंत, जय केवलज्ञान-केवलदर्शन लोचन, परम सुख परमात्मा, जय अविनाशी, जय टंकोत्कीर्ण, जय विश्वरूप, जय विश्व त्यागी, विश्व ज्ञायक, जय ज्ञान अपेक्षा तीन लोक अथवा तीन काल प्रमाण, अनन्त गुणों के भंडार, अनन्त गुण खान, जय चौसठ ऋद्धि के ईश्वर, जय सुख सरोवर रमण, जय संपूर्ण सुख से तृप्त, सर्व रोग-दुष्ट रहित, जय अज्ञान तिमिर के विध्वंसक, जय मिथ्यात्व वज्र को तोडने, टुकडे-टुकडे करने के लिये परम वज्र, जय तुंग शीश तुम्हारी जय हो। आप ज्ञानानन्द बरसाने वाले, अमोघ ताप को दूर करने अथवा भव्य जीव रूपी खेत का पोषण करने वाले हैं / आप ज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्य अंगोपांग सहित तीन लोक के अग्रभाग में स्थित हैं फिर भी तीन लोक को एक परमाणु मात्र भी खेद नहीं होता है / भगवान हम आपके उपकार को नहीं भूले हैं, अत: दयाबुद्धि करके अल्प समय हमें आपके पास बैठने