Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 212 ज्ञानानन्द श्रावकाचार उस सदृश्य अवगुण रूप फल ही होता है / इसीप्रकार धर्मात्मा पुरुषों की अनुमोदना करने पर धर्म का फल स्वर्ग-मोक्ष मिलता है / प्रतिमाजी में साक्षात तीर्थंकर देव की छवि है, उनकी पूजा-भक्ति करने पर महाफल उत्पन्न होता है। यहां पुनः कोई प्रश्न करता है :- अनुमोदना करना था तो उनका स्मरण करके ही अनुमोदना की होती, आकार क्यों बनाया ? आकार की अनुमोदना :- स्मरण करने पर तो तीर्थंकर देव का परोक्ष दर्शन होता है / सदृश्य आकार बनाने पर प्रत्यक्ष दर्शन होता है / परोक्ष की अपेक्षा प्रत्यक्ष में अनुराग विशेष उत्पन्न होता है, आत्म द्रव्य तो किसी का भी दिखता नहीं है। किसी का (समवशरण में भी तीर्थंकर देव का) वीतराग मुद्रा स्वरूप शरीर ही दिखता है / अतः भक्त पुरुष को तो मुख्य रूप से वीतराग के शरीर का ही उपकार है, चाहे जंगम प्रतिमा हो चाहे थावर प्रतिमा हो, दोनों का उपकार एक समान है / जंगम प्रतिमा अर्थात तीर्थंकर का शरीर तथा थावर अर्थात जड प्रतिमा / जैसे नारद ने रावण के समक्ष सीता के रूप का वर्णन किया तब तो रावण थोडा ही आसक्त हुआ, बाद में सीता का चित्र दिखाया तो वह विशेष आसक्त हुआ। इस ही प्रकार परोक्ष-प्रत्यक्ष का तात्पर्य जानना / वहां पर तो दृष्टान्त में तो चित्रपट केवल पत्र रूप ही था, यहां प्रतिमाजी का आकार विनय पूर्वक यथावत बनाया गया है, अतः प्रतिमाजी का दर्शन करने पर तीर्थंकर का स्वरूप याद आता है / इसप्रकार परमेश्वर (जिनबिम्ब) की पूजा करके वे देव क्या करते हैं तथा वे कैसे हैं यह बताते हैं। जैसे बारह वर्ष का राजहंस पुत्र शोभायमान दिखता है उससे भी असंख्यात अनन्त गुणें तेज प्रताप को लिये शोभित हैं / उनका शरीर और कैसा है ? हड्डियां तथा मांस, मल-मूत्र के समूह से रहित हैं। करोडों सूर्यों की ज्योति को लिये महासुन्दर हैं। रेशम-मखमल से भी अनन्त गुणा कोमल स्पर्श है, अमृत के सदृश्य मीठा है, बावन चंदन (एक विशेष