Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 249 मोक्ष सुख का वर्णन चैतन्य धातु के घनपिंड हैं, अगुरुलघु रूप को धारण किये हैं। अमूर्तिक आकार है, सर्वज्ञ देवों को प्रत्यक्ष अलग-अलग दिखते हैं / नि:कषाय हैं तथा आवरण रहित हैं / उनने अपने ज्ञायक स्वभाव को प्रकट किया है तथा प्रति समय षट् प्रकार की हानि-वृद्धि रूप से परिणमते हैं / अनन्तानन्त आत्मिक सुख को आचरते हैं, आस्वादते हैं, फिर भी तृप्त नहीं होते हैं अथवा यों कहो अत्यन्त तृप्त हैं / अब कुछ चाह नहीं रही है / ___परमदेव और कैसे हैं ? अखण्ड हैं, अजर हैं, अविनाशी हैं, निर्मल हैं, शुद्ध हैं, चैतन्य स्वरूप हैं, ज्ञानमूर्ति हैं, ज्ञायक हैं, वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं। सर्व तत्वों को जानने वाले हैं, सहजानन्द हैं, सर्व कल्याण के पुंज हैं, त्रिलोक द्वारा पूज्य हैं, सर्व विघ्नों को हरनेवाले हैं। श्रीतीर्थंकरदेव भी उन्हें नमस्कार करते हैं अत: मैं भी बारम्बार हाथों को मस्तक से लगाकर नमस्कार करता हूं / किसलिये नमस्कार करता हूं ? उन्हीं के गुणों की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूं / सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? देवाधिदेव हैं, देव संज्ञा सिद्ध भगवान को ही शोभित होती है, अन्य चार परमेष्ठियों को गुरु संज्ञा है, देव संज्ञा नहीं है / सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? सर्व तत्वों को प्रकाशित करते हुये भी ज्ञेय रूप नहीं परिणमते हैं, अपने स्वभाव रूप ही रहते हैं, ज्ञेय को जानते मात्र हैं। किस प्रकार जानते हैं ? ये समस्त ज्ञेय पदार्थ मानों शुद्ध ज्ञान में डूब गये हैं, मानों निगल लिये गये हैं, मानों स्वभाव में आ बसे हैं, मानों अवगाहन शक्ति में समा गये हैं, मानों तादात्म्य होकर परिणमें हैं, मानों प्रतिबिम्बित हुये हैं, मानों पत्थर में उकेर दिये गये हैं, या चित्र में चित्रित कर दिये गये हैं अथवा आकर स्वभाव में ही प्रवेश किया है / सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? उनके अनन्त प्रदेश शान्त रस से भरे हैं, ज्ञान रस से आह्लादित हैं, उनके आत्म प्रदेशों से शुद्धामृत झरता है तथा अखण्ड धाराप्रवाह से बहता है / और कैसे हैं ? जैसे चन्द्रमा के विमान से अमृत