Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ सम्यग्चारित्र 191 होता है तथा अविनय देखने से महापाप उत्पन्न होता है / जहां कुभेषी रहते हों वहां श्रीजी के विनय का अभाव है / शुभ फल तो एक श्रीजी का विनय का ही है / एक बार ही विनय पूर्वक श्रीजी के दर्शन करने से महापुण्य बंध होता है तथा अविनय सहित बार-बार दर्शन करे तो भी त्यों-त्यों बहुत पाप उत्पन्न होता है। ____ अपने माता-पिता का कोई दुष्ट पुरुष अविनय करता हो तो यदि स्वयं में सामर्थ्य हो तो उसका निग्रह करके माता-पिता को छुडा ले तो उसने अपने माता-पिता का विशेष विनय किया तथा यदि सामर्थ्य न हो तो उस मार्ग में न जावे तथा उसका बहुत खेद रहे / उसीप्रकार श्री वीतराग देव के जिनबिम्ब का कोई दुष्ट पुरुष अविनय कर रहा हो तो उसका निग्रह करके जिनबिम्ब का विशेष विनय करना चाहिये तथा यदि सामर्थ्य न हो तो उनके अविनय के स्थान पर न जावे / कुभेषियों का संसर्ग भी नहीं करना :- जहां कुभेषी रहते हैं वहां अत्यन्त घोर अनेक तरह के पाप होते हैं / वहां जाने (रहने) वाले कुभेषियों के गृहस्थ शिष्य भी उनके उपदेश से पापी तथा उन जैसे ही होते हैं तथा अज्ञानी, मूढ, तीव्र कषायी, वज्र मिथ्यात्वी होते हैं, अत: उनका संसर्ग दूर से ही त्यागने योग्य है / यदि पहले अल्प मिथ्यात्व (अगृहीत मिथ्यात्व मात्र), कषाय हो तो वहां जाने पर उल्टे तीव्र हो जाने से धर्म कहां से होगा ? धर्म के लुटेरों के पास से जो पुरुष किसी भी प्रकार धर्म चाहे तो वह अवश्य पागल ही हो गया है / जैसे सर्प को दूध पिलाकर कोई उसके मुख से अमृत चाहे तो अमृत की प्राप्ति कैसे हो सकेगी, विष ही की प्राप्ति होगी / उसीप्रकार कुभेषियों के संसर्ग से अधर्म की ही प्राप्ति होती है / वे धर्म के निंदक हैं, परम बैरी हैं, अधर्म का पोषण करने वाले हैं, मिथ्यात्व के सहायक हैं / यदि अंश मात्र भी प्रतिमाजी का अविनय करता है तो उसकी होनहार क्या है यह टाप तो नहीं जानते सर्वज्ञ ही जानते हैं /