Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 204 ज्ञानानन्द श्रावकाचार ये स्त्री-पुरुष कैसे हैं ? इनका मुख गुलाब के फूल जैसा है, इनकी सौम्य मूर्ति चन्द्रमा के सदृश्य है। इनका प्रताप सूर्य के सदृश्य है,अद्भुत लावण्य लिये हैं / सभी की एकाग्र दृष्टि मुझ पर है, मुझे पति के समान मानती हुई हाथ जोडे खडी है तथा अमृतमय, मीठे, कोमल, विनय सहित मेरे मन के अनुसार वचन बोल रही हैं। इनकी महिमा का क्या कहना ? धन्य है यह स्थान तथा धन्य है इन जैसे स्त्री-पुरुष, धन्य है इनका रूप, धन्य है इनका विनय गुण, सौजन्यता तथा वात्सल्य गुण / वे स्त्री-पुरुष कैसे हैं ? पुरुष तो सब कामदेव के सदृश्य हैं तथा स्त्रियां इन्द्राणियों के समान हैं / इनके शरीर की सुगन्ध से सर्वत्र सुगन्ध फैल रही है / इनके शरीर के प्रकाश से सर्व ओर प्रकाश फैल रहा है / जहां-तहां रत्न-माणिक-पन्ना-हीरा-चिन्तामणि रत्न, पारस, कामधेनु, चित्राबेल, कल्पवृक्ष इत्यादि अमूल्य अपूर्व निधियों के समूह ही दिखते हैं। अनेक प्रकार के मांगलिक वाध्य यंत्र बज रहे हैं / कोई गा रहा है, कोई तालमृदंग बजाता है, कोई नृत्य करता है, कोई अद्भुत कौतुहल करता है / कोई देवांगनायें रत्नों को चूर कर मांगलिक स्वस्तिक पूर (बना) रहीं हैं / कोई उत्सव जैसा कर रही हैं / कोई यश गाते हैं, कोई धर्म की महिमा गाता है, कोई धर्म के उत्सव कर रहा है, यह बडा आश्चर्य है। ये क्या हैं मैं क्या जानूं ? ऐसी आनन्दकारी अद्भुत चेष्टायें मैने पूर्व में कभी देखी नहीं, मानों यह परमेश्वरपुरी है अथवा परमेश्वर का निवास है अथवा यह मात्र स्वप्न ही है अथवा मुझे भ्रम उत्पन्न हुआ है अथवा कोई इन्द्रजाल है / ऐसा विचार करते-करते उस पुण्याधिकारी देवता के सर्व आत्म प्रदेशों में शीघ्र ही अवधिज्ञान स्फुरायमान हो जाता है। उसके होने पर वह (देव) निश्चय से अपने पूर्व भव को देखता है तथा उसे (पूर्व भव को) देखने पर सारा भ्रम नष्ट हो जाता है / तब फिर ऐसा विचार करता है - मैनें पूर्व भव में जिनधर्म का सेवन किया था, उसका यह फल है, न स्वप्न है न ही भ्रम है, न ही इन्द्रजाल है / मेरे मृत शरीर को ले जाकर