Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ सामायिक का स्वरूप 195 क्षेत्र बहुत है / इस अपने प्रमाण से अधिक क्षेत्र का सामायिक के काल पर्यन्त के लिये त्याग करे। काल शुद्धि :- जघन्य दो घडी (48 मिनिट), मध्यम चार घडी, उत्कृष्ट छह घडी का प्रमाण करे / सुबह दिन उगने से एक घडी (24 मिनिट) पहले से एक घडी बाद तक अथवा मध्यम सामायिक में दिन उगने से दो घडी पहले से लेकर दो घडी बाद तक अथवा उत्कृष्ट सामायिक में दिन उगने से तीन घडी पहले से तीन घडी बाद तक सामायिक का काल है / इस ही प्रकार मध्यान्ह में एक घडी पहले से एक घडी बाद तक अथवा दो घडी पहले से दो घडी बाद तक अथवा तीन घडी पहले से तीन घडी बाद तक मध्यान्ह की सामायिक का काल है। ___ इसीप्रकार संध्या के समय दिन एक घडी बाकी रहे तब से एक घडी रात हो जाने तक अथवा दिन दो घडी बाकी रहे तब से दो घडी रात हो जाने तक अथवा दिन तीन घंडी बाकी रहे तब से तीन घडी रात हो जाने तक संध्या की सामायिक का काल है / जितने काल सामायिक करने की प्रतिज्ञा की हो उससे भी कुछ अधिक काल तक जब तक मन निश्चल रहे, बीतने के बाद सामायिक से उठे। भाव शुद्धि :- भावों में आर्त, रौद्र ध्यान को छोडकर धर्म ध्यान को ध्यावे। इसप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धता जानना / आसन शुद्धि :- पद्मासन अथवा कायोत्सर्ग आसन रखे / अंगों को न हिलावे, इधर-उधर देखे नहीं, अंगों को मोडे नहीं, अंगों का हलनचलन न हो, घूमें नहीं, नींद न लें, शीघ्रता से न बोलें, शब्दों को इसप्रकार धीरे-धीरे उच्चारण करे कि अपना शब्द स्वयं ही सुने दूसरा कोई न सुने। अन्यों के शब्द भी स्वयं राग-भाव से न सुने, अन्यों को राग-भाव से देखे भी नहीं, अंगुलियां न चटकावे, इत्यादि शरीर की प्रमाद क्रियाओं का त्याग करे / सामायिक काल में मौन रखे अथवा जिनवाणी के अतिरिक्त