Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 179 सम्यग्चारित्र एक-एक पुलवी में असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं / एकएक शरीर में अनन्त काल के समयों से अनन्तानन्त गुणे जीव होते है / एक-एक जीव से अनन्तानन्त कर्म वर्गणा लगी है / एक-एक वर्गणा में अनन्तानन्त परमाणु होते हैं / एक-एक परमाणु के साथ अनुक्रम रूप से समस्त जीव राशि से अनन्त गुणे विस्रसोपचय रूप परमाणु पाये जाते हैं / एक-एक परमाणु में अनन्तानन्त गुण तथा पर्यायें पाई जाती हैं / एक-एक गुण व पर्याय के अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेद हैं / ऐसी विचित्रता एक सुई की नोक के ऊपर निगोद राशि के जीव में पायी जाती है / ऐसे जीव, ऐसे परमाणुओं से वेष्टित अथवा वर्गणा से आच्छादित जीवों से तीन लोक घडे में घी के समान अत्यन्त (लबालब) भरा है। ____एक निगोदया शरीर के अन्दर के जीवों के अनन्तवें भाग भी निरन्तर मोक्ष जाते रहें तो भी तीन काल में कभी-कमी न आवे ऐसा उपदेश भी आपने दिया है / उसी सुई की नोक जितने आकाश में अनन्तानन्त परमाणु भी एक-एक भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र स्थित हैं / अनन्त स्कंध दो-दो परमाणु वाले भी स्थित है / इसप्रकार एक-एक परमाणु बढते तीन परमाणुओं के स्कंध से लेकर अनन्त परमाणुओं के स्कध पर्यन्त अनन्त जाति के स्कध वे भी सुई की नोंक पर अनन्तानन्त स्थित हैं। उन प्रत्येक में अनन्त गुण, अनन्त पर्यायों, अनन्त अविभागी प्रतिच्छेदों एवं तीन काल सम्बन्धी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की अवस्था सहित एक समय में हे जिनदेव आपने ही देखे हैं, आपने ही जाने हैं, आपने ही बताये हैं / इन परमाणुओं के परस्पर रुक्षता तथा स्निग्यता के दो अंश अथवा तीन चार आदि अंशों वालों में से दो दो की अधिकता वाले संग होकर संयुक्त बंध, विषम जाति बंध ऐसे परमाणुओं के परस्पर बंधने के लिये कारण अथवा अकारण रूप रूक्ष तथा स्निग्ध अंशों का स्वरूप भी आपके ही ज्ञान में झलका है तथा दिव्यध्वनि के द्वारा कहा गया है /