Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 141 विभिन्न दोषों का स्वरूप ऐसा श्रोता शास्त्र में सराहनीय कहा गया है / वही मोक्ष का पात्र है, उसकी महिमा इन्द्र आदि देव भी करते हैं तथा महिमा करने वाले पुरुष को पुण्य का संचय होता है एवं उसका भी मोह गलता है / गुणवान की अनुमोदना करने पर अनुमोदना करने वाले को भी गुणों का लाभ होता है तथा अवगुणी की अनुमोदना करने वाले को अवगुणों का लाभ होता है / अतः अवगुणी की अनुमोदना नहीं करना चाहिये, गुणवान की ही अनुमोदना करना चाहिये। इति श्रोता के गुण संपूर्ण / (नोट :- मध्यम और अधम श्रोता का स्वरूप ग्रन्थ में नहीं बताया गया है।) उनचास का भंग आगे उनचास (49) भंग का स्वरूप कहते हैं / मन-वचन-काय, कृत-कारित-अनुमोदना इन तीन करण तथा तीन योग के परस्पर पलटने से उनचास भंग उत्पन्न होते हैं / अत: जिस भंग पूर्वक सावध योग का त्याग करना हो तथा प्रतिज्ञा आदि व्रतों का ग्रहण करना हो वह इन उनचास भंगों द्वारा करे / इनका विवरण - कृत, कारित, अनुमोदना ये तो एक-एक कर तीन भंग एक संयोगी जानना / फिर कृत-कारित, कृतअनुमोदना, कारित-अनुमोदना, ये द्विसंयोगी तीन भंग हैं, फिर कृतकारित-अनुमोदना यह एक त्रिसंयोगी भंग है / इसप्रकार इन तीन करणों के ये सात भंग हुये। इसीप्रकार तीन योगों के भी सात भंग होंगें / फिर पूर्व कहे (करणों के सात भंगों में से) एक एक. पर ये सात भंग लगाने पर उनचास भंग हो जावेंगे। इनका विशेष कथन करते हैं - (1) मन कृत (2) वचन कृत (3) काय कृत (4) मन-वचन कृत (5) मन काय कृत (6) वचन काय कृत (7) मन वचन काय कृत (8) मन कारित (9) वचन कारित (10) काय कारित (11) मन वचन कारित (12) मन काय कारित (13) वचन काय