Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 139 (14) गाय - इसप्रकार इन चौदह दृष्टान्तों के द्वारा उनके सदृश्य जो श्रोता हैं उनके लक्षण कहते हैं / इनमें कुछ मध्यम तथा कुछ अधम श्रोता हैं / __आगे परम उत्कृष्ट श्रोता का लक्षण कहते हैं :- विनयवान हो व धर्मानुरागी हो। संसार के दुःखों से भयभीत हो, श्रद्धानी हो, बुद्धिमान हो, उद्यमी हो, मोक्षाभिलाषी हो, तत्त्वज्ञान को चाहने वाला हो, भेद विज्ञानी तथा परीक्षा प्रधानी हो। हेय-उपादेय को पहचानने की बुद्धि वाला हो / ज्ञान-वैराग्य का लोभी हो, दयावान हो, क्षमावान हो, मायाचार रहित हो, निरवांछक हो, कृपणता रहित हो, प्रसन्न रहने वाला हो, प्रफुल्लित मुख वाला हो, सौजन्य गुण सहित हो, शीलवान हो, स्व-पर विचार में प्रवीण हो, लज्जा व गर्व से रहित हो। मन्द बुद्धि न हो, विचक्षण हो, कोमल परिणामी हो, प्रमाद रहित हो, सप्त व्यसन का त्यागी हो, सप्त भय से रहित हो, वात्सल्य अंग सहित हो, आठ मद से रहित हो, षट अनायतन तथा तीन मूढता से रहित हो। अन्य धर्मों में रुचिवान न हो, सत्यवादी हो, जिनधर्म के प्रभावना अंग में तत्पर हो, गुरु आदि के मुख से जिनप्रणीत वचनों को सुनकर एकान्त स्थान में बैठकर हेय-उपादेय का विचार करने का स्वभाव हो। गुणग्राही हो, निजगुण अवगुण का जानकार हो। बीज-बुद्धि ऋद्धि के सदृश्य बुद्धि हो, ज्ञान का क्षयोपशम विशेष हो / आत्मिक रस का आस्वादी हो, अध्यात्म वार्ता में विशेष प्रवीण हो / निरोग हो, इन्द्रियां प्रबल हों, आयु में वृद्ध या तरुण हो। ऊंचे कुल का हो, अपने ऊपर किये गये उपकार को भूलने वाला न हो। जो परउपकार को भूलता है वह महापापी है, इससे बढ कर अन्य कोई पाप नहीं है / लौकिक कार्य के उपकार को ही जब सत्पुरुष नहीं भूलते तो परमार्थ कार्य के उपकार को सत्पुरुष कैसे भूलें ? एक अक्षर का भी उपकार करने वाले को भी जो भूले वह महापापी है, विश्वासघाती है, कृतघ्न है /