Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
View full book text
________________ सम्यग्ज्ञान 153 के विमान (सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, तारे आदि) छोटे दिखते हैं अथवा चश्मे, दुरबीन आदि पदार्थो से वस्तु का स्वरूप छोटा होने पर भी बडा दिखता है, इत्यादि स्वरूप-विपर्यय है / सम्यग्ज्ञान होने पर पदार्थ का स्वरूप जैसे का तैसा, जैसा जिनदेव ने देखा है, वैसा ही श्रद्धान करने में आता है, अत: उत्तर (अन्य) पदार्थों के स्वरूप का जान- पना भी सम्यग्ज्ञानी को संशय, विपर्यय, विभ्रम, विमोह रहित होता है। ___ अब संशय, विमोह, विभ्रम का स्वरूप कहते हैं - जैसे चार पुरुषों ने सीप के टुकडे को देखा। एक पुरुष कहने लगा - न जाने सीप है कि न जाने चांदी है, उसे संशय है / दूसरे ने कहा - यह तो चांदी है, उसे विमोह है। तीसरा बोला - क्या है, पता नहीं ? उसको विभ्रम है तथा चौथे ने कहा - यह तो सीप का टुकडा है, यह पूर्व के तीनों दोषों से रहित, जो वस्तु का जैसा स्वरूप था वैसा ही जानने वाला कहा जाता है / इसीप्रकार सात तत्त्वों के जानपने में अथवा स्व-पर के जानपने में घटित कर लेना / वह ही कहते हैं - आत्मा जीव है अथवा पुदगल है, ऐसे जानपने को संशय कहते हैं / मैं तो शरीर ही हूं - ऐसे जानपने को विमोह कहते हैं / मैं क्या हूं - ऐसे जानपने को विभ्रम कहते हैं / मैं तो चिद्रूप हूं - ऐसे जानपने को सम्यग्ज्ञान कहते हैं। मुंह से कहे, उसी के अनुसार मन में धारणा हो तथा मन में धारण जैसा-जैसा हो वैसा-वैसा ही उसका ज्ञान कहा जाता है / ऐसा सम्यग्ज्ञान का स्वरूप जानना / सम्यग्ज्ञान सम्यक्दर्शन का सहचारी है / सहचारी अर्थात् साथ ही विचरण करें, सदैव साथ-साथ ही रहे / एक के बिना दूसरा न हो, एक का उदय होने पर दूसरे का भी उदय हो, एक का नाश होने पर दूसरे का भी नाश हो, उसे सहचारी कहते हैं / सम्यकदर्शन होने पर सम्यग्ज्ञान भी होता है, सम्क्द र्शन का नाश होने पर सम्यग्ज्ञान का भी नाश होता है / सम्यक्दर्शन के बिना सम्यग्ज्ञान होता नहीं, सम्यग्ज्ञान बिना सम्यक्दर्शन होता नहीं, यह दोनों ओर से नियम है / भेद-विज्ञान तो सम्यक्दर्शन का कारण है, सम्यक्दर्शन सम्यग्ज्ञान का कारण है / इसप्रकार सम्यग्ज्ञान का यथार्थ स्वरूप जानना / इति सम्यग्ज्ञान कथन संपूर्ण /