Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 85 विभिन्न दोषों का स्वरूप निकल जाने पर लोटा उल्टा होकर ऊपर से खेंचने पर ऊपर चला आवेगा। इसप्रकार जीवाणी पहुंचाना चाहिये। इसप्रकार न पहुंचाई जा सके तो समस्त छाने पानी की जिवाणी एकत्रित करके, पानी भरने (खींचने) के पात्र में जिवाणी डालकर पानी लाने वाली स्त्री को देदें। पानी भरने वाली उस स्त्री को बंधा मासिक वेतन से कुछ अधिक दें तथा उससे कह दें कि बर्तन को सीधा ही कुये के नीचे उतार देना, रास्ते में अथवा कुये में ऊपर से जिवाणी मत डाल देना / यदि इसप्रकार रास्ते में अथवा कुये के ऊपर से जिवाणी डालते पाऊंगा तो तुझे पानी भरने से अलग कर दिया जावेगा / इतना कहने के बाद भी गुप्त रूप से पीछे-पीछे कुये तक जाकर पता करें। इसप्रकार पूर्व कहे अनुसार जिवाणी को सीधे नीचे उतारे, तो उसकी विशेष प्रशंसा करें। कुछ राशि ज्यादा देनी पडे तो हिचकना नहीं (अधिक दे ही देना) अथवा उसे पाप का भय दिखावे / इसप्रकार जिवाणी पहुंचाई जावे उसी को छना पानी पीना कहते हैं। उपरोक्त प्रकार जिवाणी न पहुंचाई गयी हो तो फिर अनछना पानी ही पीया कहा जावेगा, अथवा शूद्र के समान कहा जावेगा / जिनधर्म में तो दया का नाम ही क्रिया है, दया के बिना धर्म नहीं कहा जाता / जिनके हृदय में दया है वे ही पुरुष भव सागर तिरते हैं / इसप्रकार पानी की शुद्धता का स्वरूप जानना। आटे की शुद्धता मर्यादा से अधिक समय के आटे में कुंथिया, सूलसली आदि अनेक जीवों की राशि अथवा सर्दी (नमी) में निगोद राशि सहित जीव उत्पन्न हो जाते हैं / ज्यों-ज्यों मर्यादा से रहित का आटा रहता है त्यों-त्यों अधिक बडे शरीर के धारक तथा आटे की कणिका के सदृश्य त्रस जीव