Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 124 ज्ञानानन्द श्रावकाचार केवली के भी आहार होना प्रतिपादित कर दिया। इस भाव को धिक्कार हो! हे भाई ! तू क्यों अपने स्वार्थवश निर्दोष परम-केवली भगवान को भी दोष लगाता है, उस पाप की बात तो हम नहीं जानते कि कैसा पाप उत्पन्न होता है यह ज्ञान में ही जाना जा सकता है / फिर केवली को रोग, केवली के निहार, केवली का केवली को नमस्कार, केवली के उपसर्ग, प्रतिमाजी को आभूषण, तीर्थंकर का भस्म लपेटे होना, तीर्थंकर की पहली देशना का व्यर्थ जाना, महावीर तीर्थंकर का देवानंदी ब्राह्मण के घर अवतार लेना (गर्भ में आना), फिर इन्द्र का उन्हें उसके गर्भ से निकाल कर लेजाकर त्रिशलादेवी रानी के गर्भ में रख देना जिससे उनका त्रिशलादेवी के गर्भ से जन्म होना। आदिनाथ और सुनन्दा को युगलिया भाई-बहन कहना, तथा फिर सुनन्दा बहन से ही आदिनाथ का शादी करना / केवली को छींक आना। सुंदकर ब्राह्मण मिथ्यादृष्टि के सम्मुख गौतम गणधर का जाना स्त्री का महाव्रतों का पालन करना, स्त्री की मुक्ति तीर्थंकर की दीक्षा के समय इन्द्र का देवलोक से श्वेत वस्त्र लाकर देना तथा उनका मुनि अवस्था में उन्हीं वस्त्रों का पहने रहना। प्रतिमाजी के लंगोट एवं करधनी का चिन्ह रखना आदि। ___श्री मल्लिनाथ तीर्थंकर की स्त्री पर्याय मानना, युगलिया की काया छोटी करके देवों का उन्हें भरतक्षेत्र लाना जिनसे चौथे काल की आदि में पुनः युगलिया धर्म का चलना। युगलिया से ही हरिवंश का चलना। यति के चौदह उपकरण / मुनिसुव्रत तीर्थंकर के गणधरों में घोडे का भी गणधर होना कहना। मुनियों का श्रावकों से स्वयं आहार मांगकर लाना तथा उपाश्रय (धर्मस्थान) में बैठ कर दरवाजा बंद कर आहार करना। दो गुणा आहार करना जिसका अर्थ यह है कि कोई साधु मांगकर आहार लाया हो, आहार करने के बाद जो शेष बच गया हो, तो उस आहार को तेला