Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 131 श्वेताम्बर धर्म दोनों में ऐसा कहा है कि आठ समय में अधिक से अधिक एक सौ आठ जीव ही मोक्ष जाते हैं तथा उन एक सौ आठ जीवों में अडतालीस (48) पुरुष वेदी, बत्तीस (32) स्त्री वेदी, अठाईस (28) नपुंसक वेदी मोक्ष जाते हैं / उपरोक्त कथन की भाव वेद की अपेक्षा तो विधि ठीक बैठती है, पर द्रव्य वेद की अपेक्षा ठीक नहीं बैठती है / पुरुष और स्त्रियां तो आधी-आधी देखने में आती हैं, पर द्रव्य से नपुंसक लाखों स्त्री-पुरुषों में एक भी देखने में नहीं आता है (एक दो ही देखने में आते हैं ) / अत: तुम्हारे (श्वेताम्बरों) के शास्त्र की बात झूठी सिद्ध हई / ____ बाहुबली मुनि के लिये वे (श्वेताम्बर) ऐसा कहते हैं कि एक वर्ष तक केवलज्ञान दौडा-दौडा फिरता रहा परन्तु बाहुबलीजी के परिणामों में ऐसी कषाय रही कि यह भूमि भरत की है इस पर मैं खडा हूं, यह उचित नहीं है / ऐसी मान कषाय के कारण केवलज्ञान उत्पन्न नहीं हुआ, इत्यादि असंभव वचन पागल पुरुषों की तरह उनके मत में कहे हुये हैं / तब वे अन्य मतियों से क्या कम हुये (अर्थात अन्य मतियों के समान ही हैं ) / जिन धर्म में तो ऐसी विपरीत बातें होती नहीं हैं / ऐसी बातें तो कहानी मात्र में भी लडके भी नहीं करते हैं / जिस पुरुष ने सिंह नहीं देखा हो उसके लिये तो बिलाव ही सिंह है, उसीप्रकार जिन पुरुषों ने वीतरागी पुरुषों के मुख से सच्चा जिनधर्म कभी सुना नहीं उनके लिये तो मिथ्या धर्म ही सत्य है। इसलिये आचार्य कहते हैं - अहो भव्य जीवो ! धर्म को परीक्षा करके ग्रहण करो / संसार में खोटे (मिथ्या) धर्म बहुत हैं तथा मिथ्या धर्म का उपदेश देनेवाले आचार्य भी बहुत हैं / सच्चे जिनधर्म को कहने (उपदेश देने) वाले वीतराग पुरुष बिरले हैं / यह न्याय ही है - अच्छी वस्तुयें जगत में दुर्लभ ही होती हैं / इसी कारण सर्वोत्कृष्ट शुद्ध जिनधर्म है वह दुर्लभ होगा ही होगा / अतः परीक्षा किये बिना जो खोटे धर्म के धारक होते हैं, उन्हें उसके श्रद्धान से अनन्त संसार में भ्रमण करना पडता