Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 136 ज्ञानानन्द श्रावकाचार नहीं है / इसप्रकार यह निंद्यपना कहा है / इस भांति श्रद्धान रहित अथवा शीलरहित स्त्री का निषेध किया है / श्रद्धावान शीलवती स्त्रियां हैं वे निंदा से रहित हैं / उनके गुण इन्द्र आदि भी गाते हैं तथा मुनिराज एवं केवली भी शास्त्र में बडाई करते हैं, वे स्वर्ग एवं परंपरा से मोक्ष की पात्र हैं तो अन्य छोटे पदों का क्या कहना ? ऐसी निंद्य स्त्री भी जिनधर्म के अनुग्रह से ऐसी महिमा प्राप्त करती हैं तो जो पुरुष जिनधर्म को साधते हैं, उनके विषय में क्या कहा जाने ? बहुत गुणों के आगे अल्प अवगुणों का जोर चलता नहीं है - यह सर्वप्रकार न्याय है / इसप्रकार स्त्री के स्वरूप का वर्णन किया। __ दश प्रकार की विद्याओं को सीखने का कारण आगे दश प्रकार की विद्याओं को सीखने का कारण बताते हैं / इनमें पांच तो बाह्य कारण हैं - सिखाने वाले आचार्य, पुस्तक, पढने का स्थान, भोजन की स्थिरता, ऊपरी सेवा करने वाले सेवक / पांच अभ्यन्तर कारण - निरोग शरीर, बुद्धि का क्षयोपशम, विनयवान, वात्सल्यत्व, उद्यमवान एवं सगुण - ये कारण हैं / वक्ता के गुण आगे शास्त्र पढने (सुनाने) वाले वक्ता के उत्कृष्ट गुणों का कथन करते हैं :- उच्चकुल का हो, सुन्दर हो, पुण्यवान हो, पंडित हो, अनेक मतों के शास्त्रों का पारगामी हो, श्रोता द्वारा प्रश्न किये जाने से पहले ही उसका अभिप्राय जानने में समर्थ हो। सभा संचालन में चतुर हो, प्रश्न सहने में समर्थ हो, स्वयं जैन मत के बहुत शास्त्रों का ज्ञाता हो, उक्ति एवं युक्ति मिलाने में प्रवीण हो, लोभ रहित हो, क्रोध-मान-माया वर्जित तथा उदार चित्त हो। सम्यग्दृष्टि वे शास्त्रोक्त क्रियावान हो, नि:शंकित हो, धर्मानुरागी हो, अन्य मतों का खंडन करने में समर्थ हो, ज्ञान-वैराग्य का लोभी हो, दूसरों के दोषों को ढांकने वाला हो तथा धर्मात्माओं के