Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 121 छोडकर अतिनीच कुल में उत्पन्न भ्रष्ट पुरुष का लालन पालन नहीं करती है। यदि उसका लालन-पालन करे तो शीलवंती किस तरह की ? "हमारी मां और बांझ” इसतरह कहना संभव नहीं है इसतरह का वचन यदि कोई कहता है तो उसको बावला तथा मतवाला जानना, क्योंकि वह चतुर नहीं है। जो जिनदेव की भी सेवा करता है और कुदेवादि की भी सेवा करता है उसको (कुदेव को) भी भला जाने और इसको (जिनदेव को) भी भला जाने तो उसके वचन भी प्रमाणिक नहीं हैं। इसलिये अरिहंत देव, निर्ग्रन्थ गुरु, जिनप्रणीत दयामयी धर्म मानना उचित है। वही मोक्षमार्ग है, अन्य कोई मोक्षमार्ग नहीं है। कितने ही अज्ञानी अन्य प्रकार से भी मोक्षमार्ग मानते हैं, वे क्या चाहते हैं ? सर्प के मुख से अमृत चाहते हैं, जल बिलोकर घृत निकालना चाहते हैं। बालूरेत पेलकर तेल की अभिलाषा करते हैं अग्नि में कमल का बीज बोकर उसकी शीतल छाया में बैठकर आराम करना चाहते हैं, इत्यादि / ऐसे विशेष कार्य करने पर फल की प्राप्ति नहीं होती, भ्रम बुद्धि से ऐसा माने तो महाकष्ट ही उत्पन्न होता है। ऐसा प्रयोजन जानना / चौरासी अछेरा श्वेताम्बर लोग दिगम्बर धर्म के विरुद्ध चौरासी अछेरे (अतिशय अथवा जिन्हें छेडा नहीं जाना चाहिये, उनके सम्बन्ध में कोई प्रश्न तर्क वितर्क न किया जावे, जैसा कहा है वैसा ही मान लिया जावे ) मानते हैं, उनका निर्देश एवं स्वरूप कहते हैं : केवली को कवलाहार होना :- ऐसा विचार नहीं करते कि संसार में क्षुधा से अधिक अन्य कोई रोग नहीं है तथा दुःख नहीं है / जिसको तीव्र दुःख पाया जावे वह परमेश्वर काहे का ? वह तो संसारी सदृश्य ही है तब फिर अनन्त सुख पाना कैसे संभव है ? तथा छयालीस दोष, बत्तीस अन्तराय रहित निर्दोष आहार कैसे मिलेगा ? केवली तो सर्वज्ञ हैं उन्हें तो सदोष-निर्दोष वस्तुयें सभी प्रत्यक्ष दिखाई देती हैं / तीन लोक तो हिंसा