Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 115 ब्राह्मण कुल की उत्पत्ति जानना / इस ही का विपर्यय (विपरीत) रूप अब देखने में आ रहा है। तुर्कमति की उत्पत्ति अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान स्वामी के समय उनका ही मौसेरा भाई ग्यारह अंग का पाठी हुआ, जिसका नाम मसकपूर्ण था / उसको प्रबल कषाय उत्पन्न हुई, उसने मलेच्छ भाषा की रचना की तथा मलेच्छ (मुसलिम) मत चलाया / शास्त्र का नाम कुरान रखा, तथा उसके तीस अध्यायों का नाम तीस सिपारा स्वा। इसप्रकार बहुत अधिक हिंसामय धर्म की प्ररूपणा की; जो काल के दोष के कारण बहुत फैला। जैसे प्रलय काल की पवन से प्रलय काल की अग्नि फैले / इसप्रकार तुर्क (मुसलिम) मत की उत्पत्ति जानना। वर्द्धमान स्वामी के मुक्त होने के बाद इक्कीस हजार वर्ष का पंचम काल प्रारम्भ हुआ। जिसमें कुछ काल बाद अर्थात लगभग अढाई सौ वर्ष बीत जाने के बाद भद्रबाहु स्वामी आचार्य हुये। उस समय केवली, श्रुतकेवली, अवधिज्ञानियों का तो अभाव हुआ / उसी समय उज्जैन नगर में चन्द्रगुप्त नाम का राजा हुआ / उसने सोलह स्वप्न देखे तथा उनका फल भद्रबाहु स्वामी से पूछा। तब उनने भिन्न-भिन्न एक-एक स्वप्न का फल कहा जिनका स्वरूप कहते हैं - चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न - (1) कल्पवृक्ष की टहनी टूटी देखी जिसका फल होगा कि क्षत्रिय दीक्षा धारण करना छोडेंगे (2) सूर्य अस्त देखने से द्वादशांग के पाठियों का अभाव होगा (3) छिद्र सहित चन्द्रमा देखने से जिनधर्म में ही अनेक मत होंगे भगवान की आज्ञा से विमुख होकर घर-घर में मनमाने मत स्थापित करेंगे (4) बारह फनों वाला सर्प देखने से बारह वर्षों का अकाल पडेगा, यति लोग क्रिया से भ्रष्ट होंगे (5) देव विमान वापस जाता देखने से पंचम काल में चारण ऋद्धि धारी मुनि, कल्पवासी देव, तथा विद्याधरों का आगमन नहीं होगा (6) कूडे में कमल की