Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 46 ज्ञानानन्द श्रावकाचार लेना। सुबह तो शाम तक के लिये प्रमाण कर लेना, तथा साझ को सुबह तक के लिये प्रमाण कर लेना। इसी के विशेष भेद का नाम नियम है। उसका विवरण - भोजन, षटरस, जलपान, कंकुम आदि (श्रृंगार की वस्तुयें ), पुष्प, तांबूल, गीत, नृत्य, ब्रह्मचर्य, स्नान, भूषण वस्त्र आदि, वाहन, शैय्या, आसन, सचित्त आदि वस्तुओं की संख्या का प्रमाण कर लेना (लेने एवं उसका पालन करने को भोगोपभोग व्रत कहते हैं)। (12) अतिथि संविभाग व्रत आगे अतिथि संविभाग व्रत का स्वरूप कहते हैं / बिना बुलाये तीन (उत्तम -मध्यम-जघन्य) प्रकार के पात्र अथवा दुःखी प्राणी अपने द्वार पर आवे तो उन्हें अनुराग पूर्वक दान देना / सुपात्र को तो भक्ति पूर्वक देना, तथा दुःखित जीवों को अनुकम्पा (करुणा) करके देना। दातार को यह (दान) सात गुणों पूर्वक देना एवं मुनियों को नवधा भक्ति करके देना चाहिये। इनका विवरण - (1) प्रतिग्रहण (2) उच्चासन (3) पादोदक (4) अर्चना (5) प्रणाम (6) मनःशुद्धि (7) वचन शुद्धि (8) काय शुद्धि (9) ऐषणा शुद्धि - ऐसे जानना (इनका स्वरूप पहले कहा जा चुका है)। __अन्य भी वस्तुओं का दान देना चाहिये। मुनियों को कमंडलपीछी, पुस्तक, औषध, वस्तिका (स्थान) देना एवं अर्जिका, श्रावकों को उपरोक्त पांच वस्तुयें तथा वस्त्र देना तथा दुखि:त जीवों को वस्त्र, औषध, भोजन, अभय दान भी देना / ___ मंदिरों में नाना प्रकार के उपकरण चढाना, पूजा कराना, (मंदिरजी की एवं उपकरणों की) मरम्मत कराना, प्रतिष्ठा कराना, शास्त्र लिखा कर धर्मात्मा ज्ञानी पुरुषों को देना। वन्दना-पूजन कराना, तीर्थयात्रा में द्रव्य (धन) खर्च करना। __न्याय पूर्वक धन कमाकर उसके तीन भाग करना / एक भाग को धर्म कार्यो के निमित्त खर्च करना, एक भाग भोजन (उपलक्षण से गृहत्थी के