Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ श्रावक-वर्णनाधिकार महापाप है / पांचवी प्रतिमा धारी को मुख से (भक्षण का) त्याग होता है, पर शरीर आदि से (विराधना का) त्याग मुनि को होता है / मुनि विशेष संयमी हुये हैं। रात्रि भोजन त्याग (छठी) प्रतिमा का स्वरूप आगे रात्रि में भोजन तथा दिन में कुशील त्याग प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - रात्रि भोजन का त्याग तो मुख्यपने पहली दूसरी प्रतिमा से ही हो चुका है / परन्तु क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण, शूद्र आदि नाना प्रकार के जीव हैं / स्पर्श शूद्र तक को श्रावक के व्रत होते है / अत: जिनके कुलक्रम से ही रात्रि भोजन का त्याग चला आ रहा है उन्हें तो रात्रि भोजन त्याग सुगम है, परन्तु अन्यमति कोई शूद्र आदि जैन बनकर श्रावक के व्रत ग्रहण करे उसके लिये यह कठिन होता है / इसलिये सर्व प्रकार इसका त्याग छठी प्रतिमा में ही संभव है अथवा अपने (स्वयं के) रात्रि में भोजन करने का त्याग तो पहले से ही था यहां अन्य को भोजन कराने (उपलक्षण से बनाने) का भी त्याग होता है / ब्रह्मचर्य प्रतिमा (सातवीं) का स्वरूप आगे ब्रह्मचर्य प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - (इस प्रतिमा का धारी) यहां स्वयं की पत्नी से भोग का भी त्याग करता है तथा नव बाढ सहित ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करता है। आरम्भ त्याग (आठवीं) प्रतिमा का स्वरूप आगे आरम्भ त्याग का स्वरूप कहते हैं - यहां (श्रावक) व्यापार, रसोई आदि के आरम्भ करने का त्याग करता है / दूसरे के घर अथवा अपने घर में निमंत्रण मिलने पर अथवा बुलाये जाने पर भोजन करता है / परिग्रह त्याग (नवमी) प्रतिमा का स्वरूप आगे परिग्रह त्याग प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - यहां वह (श्रावक) अपने पहनने के अल्प कपडे जैसे धोती, दुपट्टा, तौलिया आदि रखता है, शेष परिग्रह का त्याग करता है /