Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ | तृतीय अधिकार : विभिन्न दोषों का स्वरूप | रात्रिभोजन का स्वरूप आगे रात्रि भोजन का स्वरूप, दोष तथा फल का कथन करते हैं / सर्व प्रथम तो रात्रि में त्रस जीवों की उत्पत्ति बहत होती है, बडे त्रस जीव जैसे डांस, मच्छर, पतंगे आदि तो आंखों से दिख जाते हैं, पर बहुत से छोटे त्रस जीव भी जो दिन में भी आंखों से नहीं दिखते, संख्यातअसंख्यात उत्पन्न होते हैं तथा उनका स्वभाव भी ऐसा होता है कि दूर से ही आ आकर अग्नि पर गिरते हैं, क्योंकि ऐसी ही कोई उनको नेत्र इन्द्रिय के विषय की पीडा है। ___ सर्दी की बाधा, सर्दी में तो बैठे-बैठे हुये ही चिपट जाते हैं / चींटी, मकोडी, कंथु, कंसारी, माकडा, छोटी छिपकलियाँ आदि त्रस जीवों के समूह क्षुधा से पीडित हुये अथवा घ्राण एवं नेत्र इन्द्रिय (के विषयों) से पीडित हुये भोजन सामग्री पर पहुंच जाते हैं / भोजन सामग्री को तैयार किये बहुत समय हो गया हो, उसकी मर्यादा का उल्लंघन हो चुका हो तो उसमें बहुत त्रस जीवों के समूह उत्पन्न हो जाते है तथा उसी भोजन को रात्रि के समय (खाने के लिये) थाली आदि में रखने पर ऊपर से मक्खियाँ, मच्छर, टांटे, कीडे, मकडी, जाले, छिपकली के बच्चे आदि आ गिरते हैं तथा कंसुरे एवं सांप के बच्चे आदि भी आकर भोजन पर नीचे से चढ जाते हैं अथवा इधर-उधर से ठंडे भोजन पर आ बैठते हैं। इन निशाचर जीवों को रात्रि में विशेष दिखाई देता है, इसलिये रात्रि में ही विशेष गमन करते हैं / इसप्रकार गमन करते भोजन सामग्री में भी आ पहुंचते हैं / ऐसी भोजन सामग्री को कोई निर्दय पुरुष पशु के समान हुआ भक्षण करता है तो वह मनुष्यों में अघोरी के समान है तथा नाना