Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप जीवों की उत्पत्ति हो जाती है, तब वैसे ईंधन (उन्हीं लकडी आदि) को जलाये जाने पर उनमें जो जीव थे, वे सब जल जाते हैं, जिससे होने वाले पाप का क्या कहना ? (जलाये जा चुकने के बाद के ) चूल्हे में गर्मी का निमित्त पाकर चीटियां, मकोडे आदि जो छुपे थे, वे उस उष्ण स्थान में आ बैठते हैं, उनका भी चूल्हे में होम हो जाता है / मक्खियां, मकडियां आदि जीव तो रात्रि के समय ऊपर छत पर ही विश्राम करते हैं जो रात्रि के समय चूल्हे का धुंआ किये जाने पर, जिससे सारे घर में आताप फैल जाता है, वे सारे जीव बेहोश हो होकर चूल्हे में अथवा खाना पकाये जा रहे बर्तन में, अथवा आटे में, अथवा पानी में आ गिरते हैं, जिससे उन सब का प्राणांत हो जाता है तथा दर से ही अग्नि की ज्वाला ( चमक) देखकर पतंगे, डांस, मच्छर आ-आकर चूल्हे पर गिरकर भस्म हो जाते हैं। रात्रि में आटे आदि सामग्री में इल्ली, सुलसली, कुंथिया आदि होते हैं, छोटे जीव अथवा चींटी, मकोडी, इल्ली आदि चढ जाते हैं / घी, तेल, दूध, मीठे में भी जीव आ पडते हैं / उनमें से कुछ छोटे जीव तो दिन में भी दिखाई नहीं देते, तो रात्रि में वे जीव कैसे दिखाई देंगे ? अत: आचार्य कहते हैं - ऐसे दोषों वाला आहार कैसे किया जावे ? रात्रि में चूल्हा जलाने को श्मशान की भूमि से भी (जहां बहुत जीव जलाये जाते हैं) अधिक पाप बंध का कारण कहा है / श्मशान में तो दिन में एक-दो ही मुर्दे जलाये जाते हैं, पर चूल्हे में तो अगणित जिन्दा जीव जलाये जाते हैं / अतः रात्रि में चूल्हा जलाने का महापाप है / जो रात्रि में चूल्हा जलाते हैं उनके पाप की मर्यादा हम नहीं जानते, केवली के ही ज्ञान गम्य है / कुछ धर्मात्मा पुरुष तो ऐसे हैं कि रात्रि में दीपक भी नहीं जलाते / इसप्रकार रात्रि में चूल्हा जलाने के दोषों का कथन किया। अनछने पानी के दोष आगे अनछने पानी के दोष बताते हैं - तुरन्त छने पानी से भरे लाख करोड हंडों को गिराओ, उसमें भी एकेन्द्रिय जीवों को मारने का पाप