Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप जैन की पहिचान जैन पुरुषों के तीन चिन्ह हैं। (1) जिन प्रतिमा के दर्शन किये बिना भोजन नहीं करना / (2) रात्रि में भोजन नहीं करना / (3) अनछना जल नहीं पीना / इनमें से एक की भी कमी हो तो वह जैन नहीं है, अन्य मति शूद्र आदि के समान है। अत: अपने हित के वांछक पुरुष शीघ्र ही अनछने पानी को छोडो / अनछने पानी के दोषों का कथन समाप्त / जुआ के दोष आगे सात व्यसनों में से छह को छोडकर मात्र एक जुआ के दोषों का वर्णन करते हैं / छह व्यसनों के दोष तो प्रकट दिखते हैं, जुआ के दोष अप्रकट हैं, अत: उन्हें छह व्यसनों से अधिक प्रकट दिखाते हैं / जुआ में हार हो जाने पर चोरी करनी पडती है / चोरी का धन आने पर परस्त्री की चाह होती है / परस्त्री का संयोग न मिले तो वेश्या के जाता है / वेश्या के घर मदिरा पान करता है, जिसके पीने से मांस की चाह होती है / मांस की चाह होने पर शिकार खेलना चाहता है / इसप्रकार सात व्यसनों का मूल एक जुआ ही है। इसके सेवन से अन्य भी बहुत दोष उत्पन्न होते हैं / जुवारी पुरुष की जगह (संपत्ति) के स्थान पर आकाश रह जाता (खत्म हो जाती) है / इस लोक में अपयश होता है, इज्जत बिगडती है, विश्वास मिट जाता है, राज्य आदि से दंड पाता हैं / अनेक प्रकार के कलह क्लेश बढते हैं / क्रोध तथा लोभ भी अत्यन्त बढ जाते हैं / जन-जन के आगे दीनपना प्रकट दिखाई देता है / इत्यादि अनेक दोष जानना / बाद में (अगले भव में ) इसके पाप में नरक जाता है, जहां सागरों पर्यन्त तीव्र वेदना सहता है / अत: जो भव्य जीव हैं वे द्युत कर्म (जुआ खेलना) शीघ्र छोडें। पाण्डव आदि ने इस द्युत कर्म के वश होकर ही सारी विभूति तथा राज्य खोया था।