Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 76 ज्ञानानन्द श्रावकाचार कर जाते हैं / ऐसे पापों से नरक में पतन होता है / ऐसे दोषों के कारण धर्मात्मा पुरुष सर्वप्रकार से जन्म पर्यन्त के लिये रात्रि भोजन का त्याग करो। एक महिने रात्रि-भोजन के त्याग का फल पन्द्रह उपवास के फल जितना होता है / रात्रि भोजन का ऐसा स्वरूप जानना तथा दिन के समय भी तहखान (अंधेरे स्थान), गुफा में अथवा बादल, आंधी, धूल (मिट्टी के चक्रवात) आदि के निमित्त से प्रत्यक्ष अंधकार हो, उस समय भी भोजन करने में रात्रि भोजन के समान ही दोष जानना / भावार्थ :- जीव-जन्तु दिखाई देते रहें ऐसे दिन के प्रकाश में ही भोजन करना उचित है, दिखाई न दें तो दिन के समय भी भोजन करना उचित नहीं है। (इति रात्रि भोजन दोष / ) रात्रि में चूल्हा जलाने के दोष अब रात्रि में चूल्हा (अंगीठी आदि) जलाने के दोषों का कथन करते हैं - प्रथम तो रात्रि के समय में कई जीव-जन्तु दिखाई ही नहीं देते तथा कंडों (गोबर की थापडी) में तो त्रस जीवों का समूह होता है तथा (कंडे के) गीले-सूखे होने का पता नहीं चलता है / सहज सा (बहुत अल्पसा) गीला हो तो उसमें पैसे-पैसे भर के (बहुत छोटे छोटे) केंचुओं से लेकर बाल के अग्रभाग के संख्यातवें भाग तक के सैकडों, हजारों, लाखों संख्य, असंख्य जीवों का समूह पाया जाता है, जो सभी चूल्हे में भस्म हो जाते हैं / यदि लकडी जलाई जावे तो भी उसमें अनेक प्रकार की लटें अथवा कीडे, कनसुरे अथवा सपलेटे (छोटे सर्प के बच्चे) आदि बहुत त्रस जीवों का समूह होता है। ____ भावार्थ :- बहुत सी लकड़ियाँ तो बीधी (घुनी हुई) होती हैं। उनमें तो अनगिनत जीव होते ही हैं, कुछ लकडियाँ पोली (खोखली) भी होती हैं, जिनमें कीडे, मकोडे, कनसुरे, सपलेटे आदि जीव बैठ जाते (बैठे होते) हैं / चतुर्मास के निमित्त आदि से यदि ठंड हो तो कुंथिया तथा निगोद आदि