Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 66 ज्ञानानन्द श्रावकाचार आगे श्रावक के (घर) पर जीव दया के लिये ग्यारह स्थानों पर चंदोवा होना चाहिये, उनका कथन करते हैं - (1) पूजा का स्थान (2) सामायिक का स्थान (3) चूल्हे पर (रसोई घर में) (4) परिंडा (अर्थात पानी रखने का स्थान ) (5) ओखल पर, (6) चक्की पर (7) भोजन के स्थान पर (8) सेज पर (सोने के पलंग पर) (9) आटा छानने के स्थान पर (10) व्यापार आदि करने के स्थान पर (11) धर्म-चर्चा के स्थान पर - ऐसा जानना। सामायिक (तीसरी) प्रतिमा का स्वरूप आगे सामायिक प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - दूसरी प्रतिमा में अष्टमी-चतुर्दशी तथा अन्य पर्व के दिनों में तो सामायिक अवश्य करता ही करता था, तथा अन्य दिनों में भी मुख्यपने तो करता था पर गौणपने नहीं भी करता हो, पर नियम नहीं था, करे अथवा न भी करे / परन्तु तीसरी प्रतिमा धारी के सर्व प्रकार से (नित्य) सामायिक का नियम होता है / ऐसा जानना। प्रोषध (चौथी) प्रतिमा का स्वरूप आगे प्रोषध प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - उपरोक्त प्रकार ही दूसरी तथा तीसरी प्रतिमा धारी के प्रोषध उपवास का नियम नहीं है, मुख्यपने तो करता है पर गौणपने न भी करे / पर चौथी प्रतिमाधारी के नियम होता है कि जीवन भर (प्रोषध) करे ही करे / सचित्त त्याग (पांचवीं) प्रतिमा आगे सचित्त त्याग प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं - दो घडी से अधिक समय पहले का छना हुआ जल तथा हरितकाय की मुख से विराधना नहीं करता है तथा मुख्यपने हाथ से भी पांचों स्थावर जीवों की विराधना नहीं करता है / इसको सचित्त भक्षण का त्याग होता है / पांचों स्थावरों की काय आदि के द्वारा (विराधना का) त्याग नहीं है, (ऐसा त्याग) मुनि को होता है / हाथ आदि से हिंसा का पाप अल्प है तथा मुंह से खाने का