Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार व्यभिचारिणी परायी स्त्री के घर जाना (3) परिगृहीतागमन अर्थात पति रहित स्त्री के घर जाना (4) अनंगक्रीडा अर्थात शरीर स्पर्श आदि (काम के अंगों के अतिरिक्त अन्य अंगों से ) क्रीडा करना (5) काम तीव्राभिनिवेश अर्थात काम के तीव्र परिणाम रखना / परिग्रह परिमाणाणुव्रत के अतिचार परिग्रह परिमाणाणुव्रत के पांच अतिचार - (1) इन्द्रियों के मनोज्ञ अथवा अमनोज्ञ विषयों में हर्ष विषाद करना तथा अन्य (अतिचार) भी कहते हैं - (2) अतिवाहन मनुष्य अथवा पशु को अधिक गमन कराना (3) अतिसंग्रह अर्थात वस्तुओं का बहुत संग्रह करना (4) अतिभारारोपण अर्थात लालच करके (पशुओं पर) अधिक बोझ लादना / (5) अतिलोभ अर्थात बहुत लोभ करना / अन्य प्रकार से भी कथन करते हैं - (1) क्षेत्र वस्तु अर्थात गांव, खेत, दुकान, हवेली (मकान) आदि (2) हिरण्यस्वर्ण अर्थात नकद धन तथा आभूषण (3) धन-धान्य अर्थात चौपाये जीव तथा अनाज आदि (4) दास-दासी (5) कुप्य-भांड अर्थात वस्त्र, बर्तन, सुगंध, भोजन आदि / इनका अतिक्रमण करना अर्थात जो परिमाण किया था उसका उल्लंघन करना। दिव्रत के अतिचार दिग्व्रत के पांच अतिचार - (1) उर्ध्वव्यतिक्रम अर्थात ऊपर की दिशा में किये गये परिमाण का उल्लंघन करना (2) अधोव्यतिक्रमअर्थात नीचे की दिशा में किये गये परिमाण का उल्लंघन करना (3) तिर्यंग व्यतिक्रम अर्थात चार दिशा और चार विदिशाओं में किये गये परिमाण का उल्लंघन करना (4) क्षेत्रवृद्धि अर्थात क्षेत्र का जो परिमाण किया था उसको बढा लेना (5) स्मृत्यंतराधान अर्थात क्षेत्र का जो परिमाण किया था उसे भूल जाना (भूल से बाहर गमन कर लेना)