Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 60 ज्ञानानन्द श्रावकाचार भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत के अतिचार भोगोपभोग परिमाण व्रत के पांच अतिचार - (1) सचित्ताहार अर्थात (सचित्त) हरितकाय आदि का आहार करना (2) सचित्त सबंधाहार अर्थात सचित्त से संबंध हुई वस्तु जैसे पत्तल, दौने (पेड के पत्तों से बने खाना रखने की प्लेट व सब्जी रखने का पात्र) आदि में रखी अथवा रखकर आहार करना (3) सचित्त मिश्राहार उष्ण जल में शीतल जल मिला दिया गया हो तो उसको ग्रहण करना (4) अभिषवाहार अर्थात नमी प्राप्त अथवा द्विदल इत्यादि अयोग्य आहार करना (5) दुःपक्वाहार अर्थात जो आहार भले प्रकार पका न हो उसका आहार करना / इसप्रकार पांच भेद जानना। अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार अतिथिसंविभाग व्रत के पांच अतिचार हैं - (1) सचित्त निक्षेप अर्थात सचित्त जो पत्तल दोने आदि में रखे आहार को देना (2) सचित्तपिधान अर्थात सचित्त से ढकी वस्तु का आहार पात्र को देना (3) परव्यपदेश अर्थात् पात्र जीव को दान देने के लिये अन्य को कह कर स्वयं अन्य कार्य के लिये चले जाना (4) मात्सर्य अर्थात अन्यों के द्वारा दिये गये दान को देख न सकना (बर्दाश्त न कर सकना) (5) कालातिक्रम अर्थात (समय पर दान न देना) हीन अधिक समय लगाना / सल्लेखना के अतिचार अन्त में सल्लेखना के पांच अतिचार कहते हैं - (1) जीविताशंसा अर्थात जीते रहने की अभिलाषा करना (2) मरणाशंसा अर्थात मरण की अभिलाषा करना (3) मित्रानुराग अर्थात मित्र (एवं परिवार जनों) में अनुराग रखना (4) सुखानुबंध अर्थात इस भव के अथवा पूर्व भव में प्राप्त किये सुखों का चिन्तन करना (5) निदान अर्थात पर (अगले) भव में भोगों की अभिलाषा करना।