Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार 62 जावे तो सामायिक कर लेना अन्यथा टाल जाना (न करना) (26) अलब्ध अर्थात सामायिक की पूर्ण सामग्री न मिलने पर सामायिक न करना (27) हीन अर्थात सामायिक का पाठ पूरा न पढना अथवा सामायिक का काल पूरा होने से पहले ही उठ जाना (28) उच्चूलिका अर्थात खण्डित पाठ करना (29) मूक अर्थात गूंगे की तरह बोलना (30) दादूर अर्थात मेंढक की तरह अस्वर में (पाठ) बोलना (31) चलुनित अर्थात चित्त को भ्रमाना। इसप्रकार सामायिक के बत्तीस दोष जानना / (नोट :- मूल ग्रन्थ जिससे यह भाषारूपान्तर किया गया है उसमें बत्तीस दोषों के स्थान पर इक्तीस का ही कथन है, किसी एक का कथन छूट गया है / भोपाल से सन 1987 में प्रकाशित प्रति में संयम-मोचन को एकसाथ 24-25 नम्बर देकर 32 पूरे किये हैं।) सामायिक की शुद्धियाँ आगे सामायिक में सात शुद्धियाँ रखकर सामायिक करना चाहिये, उनका वर्णन करते हैं / (1) क्षेत्रशुद्धि अर्थात जहां मनुष्यों का हो-हल्ला न हो, डांस मच्छर न हों तथा बहुत हवा अथवा बहुत गर्मी या सर्दी न हो। (2) कालशुद्धि अर्थात प्रातः, मध्यान्ह एवं संध्या जो सामायिक के काल हैं, उनका उल्लंघन नहीं करता / जघन्य दो घडी, मध्यम चार घडी और उत्कृष्ट छह घडी सामायिक का काल है / यदि दो घडी सामायिक करनी है तो प्रातः से एक घडी पहले से लेकर एक घडी दिन चढने तक, चार घडी सामायिक करना है तो दो घडी पहले से लेकर दो घडी दिन चढने तक, तथा छह घडी करना हो तो प्रात: से तीन घडी पहले से लेकर तीन घडी दिन चढने पर्यन्त तक (सामायिक करें)। इस काल के प्रारम्भ में सामायिक की प्रतिज्ञा करें, तथा प्रतिज्ञा के बाद अन्य कार्य में काल (समय) नहीं लगावें। इसीप्रकार मध्यान्ह के समय एवं संध्या के समय के लिये भी जानना। (3) आसनशुद्धि अर्थात पद्मासन में अथवा खडगासन में सामायिक