Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ श्रावक-वर्णनाधिकार बिना दी भी लेता है ), यह माल राजा आदि का है, इसका है नहीं, इतनी चोरी इसको लगती है, पर विशेष चोरी नहीं करता है / इसी कारण इसे स्थूल रूप से अचौर्य व्रत का धारक कहा जाता है / (4) ब्रह्मचर्य व्रत ___ आगे ब्रह्मचर्य व्रत का वर्णन करते हैं / (इस व्रत का धारी) परस्त्री का तो सर्व प्रकार त्याग करता है, पर स्वस्त्री का भी अष्टमी, चतुर्दशी, दोज, पंचमी, अष्टान्हिका, सोलहकारण, दशलक्षण, रत्नत्रय आदि जो धर्मपर्व हैं उन दिनों भी शील का पालन करता है, तथा काम विकार को घटाता है / शील की नव प्रकार बाढ पालता है, जिसका वर्णन - काम के उत्पादक भोजन नहीं करता, पेट भर कर भोजन नहीं करता, श्रृंगार नहीं करता, परस्त्री की सेज पर नहीं बैठता, अकेली (पर-स्त्री) के संग नहीं रहता, राग-भाव से स्त्री के वचन नहीं सुनता, राग-भाव से स्त्री का रूपलावण्य नहीं देखता, काम कथा नहीं करता (उपलक्षण से सुनता नहीं)। ऐसा ब्रह्मचर्य व्रत जानना / (5) परिग्रह त्याग व्रत अब परिग्रह त्याग व्रत का कथन करते हैं / (इस व्रत का धारी) अपने पुण्य के अनुसार दस प्रकार के सचित्त-अचित्त बाह्य परिग्रह का प्रमाण (निश्चित) करता है / ऐसा नहीं है कि पुण्य तो थोडा हो और प्रमाण बहुत रखे (निश्चित करले) तथा उसे भी परिग्रह त्याग व्रत (ग्रहण किया) कहे, पर इसके ऐसा नहीं है / ऐसा करने में तो उल्टा तीव्र लोभ है तथा यहां तो लोभ ही का त्याग करना है, ऐसा जानना / अब दस प्रकार के (बाह्य) परिग्रहों के नाम बताते हैं - (1) धरती (जमीन) (2) यान (पालकी , गाडी आदि सवारी का उपकरण) (3) धन ( इसमें स्वर्ण, रूपा अर्थात चांदी, वस्त्र आदि भी गर्भित जानना) (4) धान्य अर्थात अनाज (5) हवेली (रहने के मकान) (6) हंडवाही