Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 42 ज्ञानानन्द श्रावकाचार (सजावट का सामान ) (7) बर्तन (8) सेज्यासन (सेज-आसन आदि) (9) चौपाये जानवर (10) दो पाये (पांव वाले) जीव - दास-दासी आदि / इसप्रकार इन दस प्रकार के परिग्रह का प्रमाण निश्चित करके उससे अधिक का त्याग करे, उसे परिग्रह त्याग व्रत का धारी कहते हैं। इसप्रकार पांच अणुव्रतों का स्वरूप जानना / (6) दिव्रत आगे दिग्व्रत का स्वरूप कहते हैं / दिग् दिशा को कहते हैं / वह (इस व्रत का धारी) दसों दिशाओं में सावध योग के प्रयोजन से गमन करने का जीवन भर के लिये प्रमाण निश्चित कर लेता है / उसके बाहर के क्षेत्र से वस्तुयें मंगाता नहीं, भेजता नहीं / पत्र आदि भी नहीं भेजता एवं वहां (निश्चित किये प्रमाण के बाहर) से आये पत्र आदि भी नहीं पढता है, ऐसा जानना। (7) देशव्रत आगे देशव्रत का कथन करते हैं / देश नाम एकदेश का है / वह (इस व्रत का धारी) प्रत्येक दिन के लिये (दिशाओं में आने-जाने का) प्रमाण कर लेता है / जैसे आज मुझे दो कोस ( एक कोस लगभग तीन किलोमीटर से कुछ अधिक होता है ), चार कोस अथवा बीस कोस इतनी ही सीमा में जाना है / इससे दूर के क्षेत्र में जाने आदि कार्य का त्याग करता है, उससे आगे गमन नहीं करता, सही (प्रमाण में रखे गये) क्षेत्र में ही गमन करता है। ___ भावार्थ :- दिग्व्रत में यहां इतना विशेष है कि दिग्व्रत में तो दिशाओं का प्रमाण जीवन भर के लिये किया जाता है, पर देशव्रत में उस (जीवन भर के लिये की गयी ) मर्यादा में ही मर्यादा को (निश्चित किये गये एक दो दिन आदि के लिये) और घटाकर बाहर का त्याग करता है, जैसे (कुछ काल ) वर्ष भर, छहमास, एक मास, एक पक्ष, एक दिन अथवा एक