Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 43 श्रावक-वर्णनाधिकार पहर, दो घडी पर्यन्त के लिये क्षेत्र का प्रमाण सावध योग के लिये करता है। धर्म के अर्थ (प्रयोजन के लिये प्रमाण) करता नहीं है, धर्म के कार्य के लिये किसी प्रकार का त्याग (सीमा का बंधन) है ही नहीं। (8) अनर्थदण्ड त्याग व्रत आगे अनर्थदण्ड त्याग व्रत का कथन करते हैं / बिना प्रयोजन पाप लगने (का बंध करने) वाले अथवा प्रयोजन वश भी महापाप लगे (का बंध करने वाले कार्यों ) का नाम अनर्थदण्ड है / उसके पांच भेद हैं - (1) अपध्यान (2) हिंसा दान (3) प्रमाद चर्या (4) पापोपदेश (5) दुःश्रुतश्रवण / इनका विशेष कथन करते हैं - अपध्यान :- अर्थात जिससे अन्य जीव का बुरा हो अथवा रागद्वेष उत्पन्न हों, कलह उत्पन्न हो, अविश्वास उत्पन्न हो, मार दिया जावे, लूट लिया जावे, शोक भय उत्पन्न हो, ऐसे उपायों का चिन्तवन करना / जैसे मृत मनुष्य का समाचार उसके इष्ट को सुना देना, परस्पर बैर याद दिला देना, राजा आदि का भय उत्पन्न करा देना, अवगुण प्रकट कर देना, मर्म छेदन वाले वचन कहना जो भविष्य में भी उसे याद रहें, इत्यादि अपध्यान का स्वरूप है। हिंसादान :- अर्थात छुरी, कटारी, तलवार, बरछी (उपलक्षण से पिस्तोल, बन्दूक आदि समस्त हिंसा के उपकरण ) आदि शस्त्र मांगने पर (अन्य को) दे देना / अथवा कडाहा, कडाही, चरी - चरखा आदि मांगे जाने पर दे देना / ईंधन, अग्नि, दीपक आदि मांगे जाने पर दे देना / सब्बल, कुदाल, फावडे (आदि जमीन खोदने के उपकरण ), चूल्हा ( उपलक्षण से अंगीठी, स्टोव, रसोई गैस आदि) मूसल ( कूटने के उपकरण ) आदि मांगे जाने पर दे देना, इत्यादि / जो हिंसा के लिये कारण हों उन वस्तुओं का व्यापार करना / बैठे-बैठे बिना प्रयोजन भूमि को खोदना, पानी ढोलना, अग्नि जलाना, पंखे से हवा करना तथा वनस्पति