Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 34 ज्ञानानन्द श्रावकाचार दुःखित जीवों को लिये चार प्रकार का (आहार, औषध, शास्त्र, अभय ) दान देता है / चार भावनाओं को निरन्तर भाता है। (1) मैत्री भावना :- सर्व जीवों से मैत्री रखता है अर्थात सर्व जीवों को अपना मित्र मानता है, उनका स्वरूप अपने जैसा ही जानता है, अत: किसी (भी जीव) की विराधना नहीं करता है / सर्व जीवों की रक्षा पालता है। (2) प्रमोद भावना :- अर्थात अपने से अधिक गुणवान पुरुषों से विनयवान होकर प्रवर्तता है / (3) करुणा भावना :- अर्थात दुःखित जीवों को देखकर उन पर करुणा करता है तथा जिसप्रकार का (उसे/उन्हें) दु:ख हो उसे मिटाने का प्रयत्न करता है। अपनी सामर्थ्य न हो तो दयारूप परिणाम ही रखता है। कठोर परिणाम तो महाकषाय हैं, कोमल परिणाम हैं वे नि:कषाय हैं, वही धर्म है। (4) माध्यस्थ भावना :- अर्थात विपरीत पुरुषों से मध्यस्थ रूप रहता है / न उनसे राग करता है न द्वेष करता है। कोई हिंसक पुरुष हों अथवा मिथ्यादृष्टि पुरुष हों अथवा सप्त व्यसनी पुरुष हों, उन्हें, यदि वे धर्मोपदेश समझें (समझ सकने के पात्र हों) तो समझाकर कमाये हुये पापों से छुडा देता है, नहीं समझें तो आप रूप रहता है / इसप्रकार चार भावना का स्वरूप जानना। ___ आगे अन्य भी कितनी ही वस्तुओं का त्याग करता है, वह कहते हैं। बीधा (कीडे लगा हुआ) अन्न अभक्ष्य कहा गया है / मक्खन तथा द्विदल अथवा दुफाडा अनाज (जिनकी दो फाड हो जाती हैं जैसे चना, मूंग आदि) के संयोग सहित अथवा काष्ट, चिरोंजी आदि (उपलक्षण से दो फाड हो जाने वाले सूखे मेवे आदि ), वृक्षों के फल एवं दही, छाछ का एक समय में भोजन नहीं करता।