Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Raimalla Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
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________________ 33 श्रावक-वर्णनाधिकार आगे अन्य भी कितनी ही बातों का प्रथम प्रतिमा का धारक (श्रावक) नीति पूर्वक पालन करता है, वह कहते हैं - अनारंभ में जीव का घात नहीं करता। ___ भावार्थ :- मकान, महल (उपलक्षण से मंदिर, धर्मशाला, कुआँ आदि ) बनवाने में हिंसा होती है, वह तो होती है, परन्तु बिना आरंभ (संकल्प पूर्वक ) जीवों को मारता नहीं है तथा उत्कृष्ट (अर्थात जिसमें बहुत जीवों का घात हो ऐसे) आरंभ नहीं करता है / कहने का भाव यह है कि खोटे व्यापार जिनमें बहुत हिंसा होती हो, बहुत झूठ बोलना पडता हो अथवा जिससे जगत में बहुत निंदा होती हो, जैसे हड्डी, चमडा आदि का, अथवा जिनमें तृष्णा बहुत बडे इत्यादि को उत्कृष्ट (आरंभ) का स्वरूप जानना। स्वयं की पत्नी को जैसे-तैसे धर्म में लगाता है, क्योंकि स्त्री की धर्म-बुद्धि हो तो धर्म साधन भली प्रकार सधता है / अपना धर्म का अनुराग बहुत बड़ाता है एवं धर्माचरण करते हुये लोकाचार का उल्लंघन नहीं करता है। ___ भावार्थ :- जिस कार्य के करने से लोक निन्दा करे ऐसे कार्यों को नहीं करता है / परन्तु जिस कार्य के करने में अपना धर्म तो जावे पर लोक भला कहे तो ऐसा नहीं है कि अपना धर्म छोडकर भी लोक का कहा कार्य करे / अतः अपने धर्म को रखते हुये लोकाचार का उल्लंघन नहीं करता। स्त्री को पुरुष की आज्ञा के अनुसार रहना उचित है, पतिव्रता स्त्री की यही रीति है। ___यह धर्मात्मा पुरुष है अतः षट आवश्यक करके भोजन करता है, वह कहते हैं - सुबह पहले तो श्री अरिहन्त देव की पूजा करता है, फिर निर्ग्रन्थ गुरु की सेवा करता है , शक्ति अनुसार संयम व तप करता है, फिर शास्त्र श्रवण, पठन-पाठन करता है, फिर पात्र जीवों के लिये अथवा