Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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तीर्थंकर वर्धमान महावीर
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कुंड, गंगा के उत्तर में नहीं, किन्तु दक्षिण में पड़ते हैं, और वे विदेह में नहीं किन्तु मगधदेश की सीमा के भीतर आते हैं । महावीर की जन्मभूमि के समीप गंडकी नदी प्रवाहित होने का भी उल्लेख है । गंडकी, उत्तर बिहार की ही नदी है, जो हिमालय से निकल कर गंगा में सोनपुर के समीप मिली है। उसकी गंगा से दक्षिण में होने की संभावना ही नहीं । महावीर को आगमों में अनेक स्थलों पर बेसालिय ( वैशालीय ) की उपाधि सहित उल्लिखित किया गया है, (सू. कृ. १, २; उत्तरा . ६) जिससे स्पष्ट होता कि वे वैशाली के नागरिक थे । जिसप्रकार कि कौशल देश के होने के कारण भगवान ऋषभदेव को अनेक स्थलों पर कोसलीय ( कौशलीय) कहा गया है । इन्हीं कारणों से डा० हार्नले, जैकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानों को उपर्युक्त परम्परा मान्य दोनों स्थानों में से किसी को भी महावीर की यथार्थ जन्मभूमि स्वीकार करने में संदेह हुआ है, और वे वैशाली को ही भगवान् की सच्ची जन्मभूमि मानने की और झुके हैं। पुरातत्व की शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि प्राचीन वैशाली आधुनिक तिरहुत मंडल के मुजफ्फरपुर जिले के अन्तर्गत बसाढ़ नामक ग्राम के आसपास ही बसी हुई थी, जहां राजा विशाल का गढ़ कहलानेवाला स्थल अब भी विद्यमान है । इस स्थान के आसपास के क्षेत्र में वे सब बातें उचितरूप से घटित हो जाती हैं, जिनका उल्लेख महावीर जन्मभूमि से संबद्ध पाया जाता है। यहां से समीप ही are भी गंडक नदी बहती है, और वह प्राचीन काल में बसाढ़ के अधिक समीप बहती रही हो, यह भी संभव प्रतीत होता है । भगवान् ने प्रब्रजित होने के पश्चात् जो प्रथम रात्रि कर्मार ग्राम में व्यतीत की थी, वह ग्राम अब कम्मनछपरा के नाम से प्रसिद्ध है । भगवान् ने प्रथम पारणा कोल्लाग संनिवेश में की थी, वही स्थान आज का कोल्हुआ ग्राम हो तो आश्चर्य नहीं । जिस वाणिज्य ग्राम में भगवान ने अपना प्रथम व आगे भी अनेक वर्षावास व्यतीत किये थे, ant or after ग्राम कहलाता है । इतिहास इस बात को स्वीकार कर चुका है कि लिच्छिविगण के अधिनायक, राजा चेटक, इसी वैशाली में अपनी राजधानी रखते थे । भगवान् का पैत्रिकगोत्र काश्यप और उनकी माता का गोत्र वशिष्ठ था । ये दोनों गोत्र यहां बसनेवाली जथरिया नामक जाति में अब भी पाये जाते हैं । इस पर से कुछ विद्वानों का यह भी अनुमान है कि यही जाति ज्ञातृवंश की आधुनिक प्रतिनिधि हो तो आश्चर्य नहीं । प्राचीन वैशाली के समीप ही एक वासुकुड नामक ग्राम है, जहां के निवासी परंपरा से एक स्थल को भगवान् की जन्मभूमि मानते आए हैं, और उसी पूज्य भाव से उस पर कभी हल नहीं चलाया गया । समीप ही एक विशालकुन्ड है जो अब भर जोता - बोया जाता है । वैशाली की खुदाई में एक ऐसी प्राचीन
गया है और मुद्रा भी मिली
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