Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Madhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
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२२.
जैन धर्म का उद्गम और विकास
और उसे निर्ग्रन्थ नातपुत्र (महावीर) का धर्म कहा है, उसका सम्बन्ध अवश्य ही पार्श्वनाथ की परम्परा से होना चाहिये, क्योंकि जैन सम्प्रदाय में उनके साथ ही चातुर्याम का उल्लेख पाया है, महावीर के साथ कदापि नहीं। महावीर, पांच व्रतों के संस्थापक कहे गये हैं। बौद्ध धर्म में जो कुछ व्यवस्थाएं निर्ग्रन्थों से लेकर स्वीकार की गई हैं, जैसे उपोसथ, (महावग्ग २, १,१); वर्षावास (म० ३, १, १) वे भी पार्श्वनाथ की ही परम्परा की होनी चाहिये, तथा बुद्ध को जिन श्रमण साधुओं का समकालीन पालि ग्रन्थों में बतलाया गया है, वे भी पार्श्वनाथ परम्परा के ही माने जा सकते हैं ।
तीर्थकर वर्धमान महावीर
अन्तिम जैन तीर्थंकर भगवान महावीर के माता-पिता तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की सम्प्रदाय के अनुयायी थे-ऐसा जैन आगम (आचारांग ३, भावचूलिका ३, सूत्र ४०१) में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यह भी कहा गया है कि उन्होंने प्रवृजित होने पर सामायिक धर्म ग्रहण किया था और पश्चात् केवल ज्ञानी होने पर छेदोपस्थापना संयम का विधान किया (आचरांग २, १५, १०१३) । उनके पिता सिद्धार्थ कुंडपुर के राजा थे, और उनकी माता त्रिशला देवी लिच्छवि वंशी राजा चेटक की पुत्री, अथवा एक अन्य परम्परानुसार बहन, थीं । उनका पैतृक गोत्र नाय, नाघ, नात (संस्कृत ज्ञातृ) था। इसी से वे बौद्ध पालि ग्रन्थों में नातपुत्त के नाम से उल्लिखित किये गये हैं। भगवान् का जन्म स्थान कुंडपुर कहां था, इसके संबंध में पश्चात्कालीन जैन परम्परा में भ्रांति उत्पन्न हुई पाई जाती है । दिगम्बर सम्प्रदाय ने उनका जन्म स्थान नालंदा के समीप कुन्डलपुर को माना है जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने मुंगेर जिले के लछुआड़ के समीप क्षत्रियकुंड को उनकी जन्मभूमि होने का सम्मान दिया है। किन्तु जैन प्रागमों व पुराणों में उनकी जन्मभूमि के सम्बन्ध में जो बातें कही गई हैं, वे उक्त दोनों स्थानों में घटित होती नहीं पाई जातीं। दोनों परम्पराओं के अनुसार भगवान की जन्मभूमि कुंडपुर विदेह देश में स्थित माना गया है, (ह. पु. २, ४ उ. पु. ७४, २५१) और इसी से महावीर भगवान को निदेहपुत्र, विदेह सुकुमार आदि उपनाम दिये गये हैं और यह भी स्पष्ट कहा गया है कि उनके कुमारकाल के तीस वर्ष विदेह में ही व्यतीत हुए थे । विदेह की सीमा प्राचीनतम काल से प्रायः निश्चित रही पाई जाती है। अर्थात् उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूर्व में कौशिकी और पश्चिम में गंडकी । किंतु उपयुक्त वर्तमान में जन्मभूमि माने जाने वाले दोनों ही स्थान कुंडलपुर व क्षत्रिय
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