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दिखाई पड़ते हैं । चारों ओर का चराचर परिताप से संतप्त है । सर्वत्र ही तो प्यासे दहक रही है । क्या वह सरोवर का जल, वह जम्बूवन की छाया, इस परिताप को शांत कर देती है ? • • तो फिर क्यों दिखाई पड़ रहा है चहुँ ओर, तृषा का यह सूखा, प्यासा, अन्तहीन रेगिस्तान • • • ? जिस चट्टान से झरना फूटता है, उसके ओंठ भी प्यासे हैं । जिस तट में नदी बहती है, वह भी विरहाकुल है . . ।
दूर उस बनाली के अन्तराल में नदी की एक नीली-सफ़ेद रेखा दिखाई पड़ रही है । उस सजल नीलिमा में क्या है, कि मेरे तपे शरीर को, ठीक इस प्रचण्ड सूर्यातप तले अभी और यहाँ वह उपलब्ध हो गई है ? • • एक शीतल नदी मेरी शिराओं में सरसराती चली आई । सारे सरोवर, सारे छायावन, मेरी अस्थियों के घाटों में लहराने लगे।..
· · · एक सांझ गांव बाहर के किसी शन्य देवालय के चबूतरे पर आ ठहरा । एकाएक बादल छा गये । वे गहराते चले गये । दूर से धूल भरी ठंडी आंधी आती दिखाई पड़ी । सारी बस्तियाँ, मन्दिरों के ऊँचे शिखर, पर्वत, वन, उस वात्याचक्र में खो गये । काल-वैशाली का प्रभंजन है यह । पुर्वया बह चली है । वर्षा के आगमन की सूचना मिली है।
सो वर्षावास के लिये दुइज्जन्त तापसों के आश्रम की ओर, मोराक सन्निवेश की राह पर चल पड़ा । पहुँचने पर कुलपति ज्वलन शर्मा ने बहुत स्नेहभाव से स्वागत किया । नैऋत्य कोण में लाल माटी से लिपी-छबी, एक सुन्दर घास की कुटिया में उन्होंने मुझे आवास प्रदान किया । आश्रम का अन्तरायन यहाँ से दीखता है । वहां भी तापसों के लिये ऐसे ही कई घास-फूस के कुटीर जहाँ-तहाँ बने हैं । बीच के चौगान में सुरम्य वृक्षावलियों के बीच लाल माटी का स्वच्छ-सुन्दर आँगन है । उसके ठीक मध्य में यज्ञ वेदिका है । वहाँ नित्य प्रातःकाल निर्दोष श्रौत यज्ञ होता है । वातावरण यज्ञाहुत द्रव्यों और वन-औषधियों की सुगन्ध से व्याप्त है ।
मेरी मौन मुद्रा को देख कर तापस-गरु असमंजस में दीखे । मैं ईषत् मुस्कुरा आया । हाथ उठाकर उन्हें आश्वस्त कर दिया । वे समाधान पाकर चले गये ।
• • तापस-बटुक आकर साँझ-सकारे कुटिया और आँगन बुहार जाते ' हैं । मेरा कमण्डलु शुद्ध जल से भर जाते हैं । भोजन के समय यज्ञ का मधुपर्क, और फल-मूल के दोने ले आते हैं । दोनों हाथों से उनका वन्दन कर उन्हें लौटा देता हूँ । वे मेरी स्थिर आँखों में झाँक कर, मेरा भावाशय समझ लेते हैं । यह सावधानी बरतते हैं कि मेरी ध्यान-चर्या में कोई बाधा न पहुँचे । कुटिया में तो मैंने कभी प्रवेश किया नहीं । जिस दिन
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