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आनन्दघन का रहस्यवाद धारा दो की शाखाओं में विभक्त हुई-एक ज्ञानाश्रयी शाखा और दूसरी सूफियों से प्रभावित शुद्ध प्रेममार्गी शाखा ।' ज्ञानाश्रयी शाखा में कबोर और शुद्ध प्रेममार्गी शाखा में मलिक मुहम्मद जायसी प्रमुख कवि हैं।
सूफी साधना में बुद्धि की अपेक्षा हृदय की भावना अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए उसमें प्रेम तत्त्व को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। सूफियों के इस प्रेम में विरह की व्याकुलता होती है और इस प्रेम-पीड़ा की जो अभिव्यञ्जना होती है वह विश्वव्यापी बनती है। साथ ही प्रेम का स्वरूप पारलौकिक बन जाता है।
वास्तव में, सूफी साधना में प्रमतत्त्व की प्रधानता है । इसलिए उनमें वास्तविकता और प्रेम की अनुभूति का दर्शन है। डा० विश्वनाथ गौड़ के अनुसार “सच्चा, भावात्मक और काव्य का अंगीभूत रहस्यवाद यही है।"२ हिन्दी कविताओं की तुलना करते हुये वे लिखते हैं-“इसकी तुलना में आधुनिक कवियों का रहस्यवाद काल्पनिक और मिथ्या है, क्योंकि उसकी रहस्यानुभूति का आधार कल्पना है, अनुभव नहीं।"३
सूफी परम्परा के कुतबन, मंझन, जायसी, उसमान, शेखनबी, कासिम शाह, नूर मुहम्मद आदि सन्त हो चुके हैं। कुतबन की 'मृगावती' रचना में रहस्यवाद की झलक पायी जाती है। उपर्युक्त समस्त सूफी सन्तों में जायसी का रहस्यवाद सर्वश्रेष्ठ एवं सुप्रसिद्ध है।
जायसी ने अपने प्रबन्धकाव्य ‘पद्मावत' की रचना मसनवी पद्धति के आधार पर की है। उसमें जायसी के कोमल हृदय तथा आध्यात्मिक गूढ़ता के दर्शन होते हैं। इस कथा में कवि का तात्त्विक उद्देश्य रत्नसेन रूपी आत्मा का पद्मावती रूपी ईश्वर को प्राप्त करना है। जायसी की रचना में अद्वैत तत्त्व पर आधारित रहस्यवाद की झलक भी मिलती है।
सूफी साधना विरहप्रधान है। परम प्रियतम से मिलन की व्याकुलता में अग्नि, पवन और समग्र सृष्टि को प्रियतम के विरह में व्याकुल प्रदर्शित किया है :
१. हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ० ७१-७२ । २. आधुनिक हिन्दी काव्य में रहस्यवाद, पृ० २६ । ३. वही, पृ० २६ ।