________________
रहस्यवाद : एक परिचय
२९
सार जल में जिस प्रकार चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब रहता है, उसी तरह घट के भीतर परमात्मा रहता है
आतमां मधे प्रमातमां दीसै ज्यौं जलमधे चंदा । १
नाथपंथ-योग में शिव-शक्ति का मिलन और उसका आनन्द चरम सीमा है | यह आनन्द रहस्य को उत्कृष्टता का दिग्दर्शन कराता है ।
गोरखनाथ के योग के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि उन्होंने हठयोग को अपनाया । इड़ा और पिंगला नाड़ी का अवरोध कर प्राण को सुषुम्ना के मार्ग में प्रवाहित करना ही हठयोग है । उनके सिद्धान्त के अनुसार कुण्डलिनी एक शक्ति है जो संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त है । यह शक्ति ही ब्रह्मद्वार को अवरूद्ध कर सोई हुई है । २ वौद्धसिद्धों की भांति ही नाथ संप्रदाय की साधना भी रहस्यपूर्ण है । उसका ध्येय भी निर्गुण तत्त्व है ।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट विदित होता है कि बौद्धधर्म की महायान शाखा के अन्तर्गत सिद्ध और नाथ दोनों पंथों में साध्य और साधन गूढ़ होने से दोनों सम्प्रदायों ने रहस्यात्मक साधना पद्धति का पर्याप्त किया। इसमें सन्देह नहीं की मध्यकालीन सन्त-साहित्य को इनकी साधना पद्धति ने अत्यधिक प्रभावित किया है । इनका सर्वाधिक प्रभाव कबीर की रचनाओं पर देखा जा सकता है ।
सूफी कवियों में रहस्यवाद
भारतीय संस्कृति में अद्वैत विचारणा और उस पर आधारित रहस्यभावना की सरिता सतत बहती रही है । आगे चलकर बौद्धमत में वज्रयानी सिद्धों और नाथ- पन्थी योगियों ने आध्यात्मिक रहस्य - भावना को सृष्टि की। फिर १२वीं शताब्दी के आस-पास साधना के क्षेत्र में निर्गुण पन्थ का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे कबीर ने आगे चलकर विकसित किया । हिन्दी काव्य के क्षेत्र में १५वीं शती से लेकर १७वीं शती तक सगुण और निर्गुण नामक भक्ति काव्य की दो समानान्तर धाराएं चलती रहीं । निर्गुण
१.
२.
३.
गोरखबानी, १२४ ।
नाथ सम्प्रदाय, पृ० १२७ ।
गोरक्ष सिद्धान्त ( १४८) ।