Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रमण-संघ की महान विभूति : प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज | ३७ साफ करते देखा है । आप श्री की प्रस्तुत सेवा निष्ठा को देखकर मेरी स्मृति पटल पर नन्दीषेण मुनि की कथा चमकने लगी । वस्तुतः लच्छेदार भाषण देना सरल व सहज है पर सेवा करना अतीव कठिन है।
जिज्ञासा की दृष्टि से आगम साहित्य के सम्बन्ध में मैंने कुछ जिज्ञासाएं प्रस्तुत की, उन्होंने जो समाधान किया उससे मुझे यह प्रतीत हुआ कि उनके मन के कण-कण में आगम के प्रति गहरी निष्ठा है। उनमें तर्क की नहीं किन्तु श्रद्धा की प्रमुखता है। उन्होंने कहा-हम सन्त हैं, हमारे चिन्तन, मनन का मूल स्रोत आगम है। आगम की इस पुनीत धरोहर के कारण ही हम साधु बने हैं, छद्मस्थ होने के कारण आगम के गुरु-गम्भीर रहस्य यदि हमारी समझ में न आये तो भी हमें उसके प्रति पूर्ण श्रद्धा रखनी है । पण्डितों की भाँति आगम की शल्य-चिकित्सा करना हमारा काम नहीं है। मुझे उनकी यह बात बहुत ही पसन्द आई।
सन् १९६४ में अजरामरपुरी अजमेर में शिखर सम्मेलन का भव्य आयोजन था। उस आयोजन में सम्मिलित होने के लिए पूज्य गुरुदेव श्री जालोर का वर्षावास पूर्णकर चैनपुरा पधारे । उस समय आप भी अपने शिष्यों सहित वहीं पर विराज रहे थे । वहाँ से शिखर सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए आप श्री ने पूज्य गुरुदेव श्री के साथ ही विहार किया। इस समय लम्बे समय तक पं० प्रवर श्री अम्बालाल जी महाराज के साथ रहने का अवसर मिला । अत्यन्त निकटता के साथ आपके जीवन को गहराई से देखा, परखा, एक सम्प्रदाय का नेतृत्व करने पर भी आप में विनय गुण पर्याप्त मात्रा में देखने को मिला । पूज्य गुरुदेव श्री आपसे दीक्षा में बड़े हैं अतः हर प्रकार से उनका अनुनय-विनय करना आप अपना कर्तव्य समझते थे । जब तक साथ में रहे तब तक कोई भी कार्य बिना पूज्य गुरुदेव श्री की अनुमति के नहीं किया। जब मैंने इस बात का रहस्य जानना चाहा तब आपने मधुर शब्दों में कहा-धर्म का मूल विनय है। मूल के अभाव में शाखा, प्रशाखा का अस्तित्व किस प्रकार रह सकेगा। देखो सामने वृक्ष पर मधुमक्खी का छत्ता है। इसमें शताधिक मक्खियाँ हैं। पर इसमें एक मक्खी जिसका नाम रानी मक्खी है जब तक वह छत्ते में बैठी रहती है तब तक ये हजारों मक्खियाँ भी उसमें आकर बैठती हैं, ज्यों ही यह मक्खी उड़कर अन्य स्थान पर चली जाती है त्यों ही ये सारी मक्खियाँ भी उड़कर चली जाती हैं।
मैंने प्रतिप्रश्न किया --- इससे आपका क्या तात्पर्य है ?
उन्होंने कहा-रानी मक्खी के समान विनय है । जीवन रूपी छत्ते में जब तक विनय रूपी रानी मक्खी रहेगी तब तक हजारों अन्य सद्गुण खींचे चले आयेंगे, पर ज्यों ही विनय गुण नष्ट हुआ नहीं कि अन्य गुण भी मिट जायेंगे अतः अभिमान को सन्त तुलसीदास ने पाप का मूल कहा है।
ट्रेन स्टेशन पर आती है किन्तु जब तक सिग्नल नीचे न गिरे तब तक वह स्टेशन में प्रवेश नहीं करती, वह बाहर ही खड़ी रहती है। अभिमान का सिंग्नल जब तक नहीं गिरता है तब तक ज्ञान रूपी ट्रेन भी जीवन रूपी स्टेशन में प्रवेश नहीं कर सकेगी। बाहुबली का प्रसंग तो तुम्हें मालूम ही है । बारह महीने तक उग्र ध्यान की साधना करने पर भी उन्हें अभिमान के कारण केवल ज्ञान नहीं हुआ। किन्तु ब्राह्मी और सुन्दरी के उद्बोधन से अपने लघु भ्राताओं को नमन के लिए कदम उठाया त्योंही केवल ज्ञान हो गया, यह है जीवन में विनय का चमत्कार ।
ध्वनि-विस्तारक यंत्र के प्रयोग के सम्बन्ध में मैंने उनके विचार जानने चाहे उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहामेरा स्वयं का विचार इस जीवन में उपयोग करने का नहीं है। जो अपवाद में इसका उपयोग करते हैं उन्हें जाहिरात में प्रायश्चित लेना चाहिये। जो स्वच्छन्द रूप से इसका उपयोग करते हैं मैं उस श्रमण मर्यादा की दृष्टि से उचित नहीं मानता।
सन् १९७१ का बम्बई कांदावाडी का ऐतिहासिक वर्षावास पूर्ण कर पूज्य गुरुदेव श्री साण्डेराव सन्त-सम्मेलन में पधारे । वर्षों के पश्चात् पुनः आपसे वहाँ पर मिलन हुआ । अनेक सामाजिक विषयों में आपसे खुलकर विचार-चर्चा हुई।
पूज्य गुरुदेव सन् १९७३ का अजमेर वर्षावास पूर्णकर अहमदाबाद वर्षावास के लिए पधार रहे थे, आप श्री भोपाल सागर (मेवाड़) में पूज्य गुरुदेव श्री से मिलने के लिए पधारे । सम्वत्सरी की एकता किस प्रकार हो इस प्रश्न