Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्री गोटूलाल मांडोत 'निर्मल'
[रायपुर]
M-0--0--0--0-0--0
तप एक ज्योति है, एक ज्वाला है । प्रात्मा से संलग्न ? कर्म कालुष्य को भस्मसात् कर उसके तेजस स्वरूप को निखारने वाले उस अग्नितत्व-तपःसाधना की विचित्र I प्रक्रियाएँ जैन-धर्म में प्रचलित हैं । तप के उन विविध
स्वरूपों की एक रूपवाही व्याख्या यहाँ पढ़िए :
----------------
000000000000
००००००००००००
h-o------------------------------------
जैन साधना में तप के विविध रूप
[एक संकलन]
AC
पनि
E
BALTATUS
नव तत्त्वों में कर्मों को क्षय करने वाला तत्त्व निर्जरा है। आत्मा से कर्म-वर्गणाओं का पृथक् होना निर्जरा कहलाता है। निर्जरा के सामान्यत: बारह भेद हैं। ये ही बारह भेद तपस्या के माने जाते हैं, इनका क्रमश: नामोल्लेख इस प्रकार है-(१) अनशन, (२) ऊनोदरी, (३) मिक्षाचर्या, (४) रसपरित्याग, (५) कायक्लेश, (६) प्रति संलीनता (७) प्रायश्चित, (८) विनय, (९) वैयावृत्य, (१०) स्वाध्याय, (११) ध्यान और (१२) व्युत्सर्ग ।
इनमें से प्रथम छह बाह्य तप के तथा अन्तिम छह आभ्यंतर तप के भेद हैं । तपों के ये बारह भेद आत्मा को मोक्ष तक पहुंचाने में आगम सम्मत सीढ़ियाँ हैं बाह्य तपों में आत्मा जब शरीर को समर्पित कर देती है तो वह इतनी निर्मल बन जाती है कि वह आभ्यंतर तप को सहज ही स्वीकार कर लेती है।
जैनागमों में तप को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उत्तराध्ययन सूत्र में लिखा है-"भव कोडि संचियं कम्मं तवसा निज्झरिज्जई" करोड़ों भवों में संचित कर्म तपस्या से नष्ट किये जाते हैं । तप के इन बारह भेदों पर जैन साहित्य में विपुल वर्णन उपलब्ध है, प्रस्तुत निबन्ध में तप के प्रथम स्थान अनशन पर ही विवेचनात्मक विचार प्रस्तुत किये जा
आहार चार प्रकार के माने गए हैं१. अशन-अन्न से निर्मित वस्तुएँ, सभी पक्वान्न आदि । २. पान-पानी। ३. खादिम-दाख, बादाम आदि सूखा मेवा । ४. स्वादिम---चूर्ण, चटनी आदि मुखवास की चीजें।
इन चार प्रकार के आहार का त्याग करना अथवा पान (पानी) को छोड़कर शेष तीन आहारों का त्याग करना अनशन कहलाता है ।
अनशन के मुख्य दो भेद हैं-इत्वरिक और यावत्कथिक ।
इत्वरिक-अल्पकाल के लिये जो उपवास किया जाता है उसे इत्वरिक अनशन कहते हैं, इसके निम्न चौदह भेद हैं
१. चतुर्थ भक्त, २. षष्ठ भक्त, ३. अष्कम भक्त, ४. दशम भक्त, ५. द्वादश भक्त, ६. चतुर्दश भक्त, - ७. षोडश भक्त, ८. अर्द्धमासिक, ६. मासिक, १०. द्विमासिक, ११. त्रिमासिक, १२. चातुर्मासिक, १३. पंचमासिक, १४. पाण्मासिक ।
इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
जिस उपवास के पहले दिन एक समय के भोजन का, दो समय उपवास के दिन का और पारणे के दिन एक समय के भोजन का त्याग किया जाता है उसे चतुर्थ भक्त कहते हैं। आजकल व्यवहार में चारों समय आहार का त्याग
"
al....
ne
"-":58kot/
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only