Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री नृसिंहदासजी महाराज की कुछ रचनाएं | ५४७ श्रीमती नै षमा तेहना गुण मुष सु गावै मु० नर नारी सहु सुष लहै ए। एक वार अवसर देषी नै श्रीमती भरतार पेषीने पे० जैन धर्म नो मर्म कहै ए॥१५॥
कर्म विवर सुण जोगही प्रतीबोध्यो कुमर सही कु० श्रावक धर्म ज धारीयो ए। जाव जीव धर्म पालीनै दोषण सघला टालीन सुर गत माहप्पधारीयो ए ॥१६॥
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महाविदै है आइनै मोटा नो कुल पाइने पा० थिवरां पास पधारसी ए।। वाणी सुण बयराग सी संजम सुं चित लागसी ला० आतम कारज सारसी ए॥१७॥ समत अठारें पच्यासे सहर राइपुर मै सुषवास सु० काती सुद पुनम दनै ए। सुकर वारज आवीयो च्यार संग सुष पावीयो पा० रष नरसिंघ कहै हर्ष मनैए ॥१८॥
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॥इति संपुर्णः ।।
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