Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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पूज्य गुरुदेव श्री अम्बालाल जी महाराज दीक्षा स्वर्ण जयन्ति समारोह कोशीथल श्री प्रकारलाल जी सेठिया का अध्यक्षीय अभिभाषण
पूज्य गुरुदेव, उपस्थित मुनिराज एवं महासती जी महाराज को वन्दन करने के पश्चात् भाइयो और बहिनो
प्रस्तुत विशाल अभिनन्दन समारोह की अध्यक्षता के लिए आपने मुझ जैसे साधारण व्यक्ति को जो प्रेम और आदर दिया उसके लिए मैं आभारी हूँ ।
इस पद की कठिनाई और जिम्मेदारी को समझते हुए मैं अपने को इस काबिल नहीं मानता किन्तु संघ का आदेश मानकर मैंने आपके सहयोग से इसे स्वीकार किया ।
शासनदेव की कृपा से यदि मैं समाज की सेवा में कुछ भी योगदान दे सका तो अपना सौभाग्य समझँगा । सर्वप्रथम और कुछ कहने के पहले मैं उन अनेक पूज्य मुनिराज और महासतियाँ जी महाराज का हार्दिक स्वागत करता हूँ, जो बहुत दूर-दूर से पाद बिहार कर हमारे समारोह को सुशोभित करने पधारें ।
गुरुदेव का अभिनन्दन करते हुए आज हम अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ क्षणों का अनुभव कर रहे हैं ।
मेवाड़ संघ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव श्री अम्बालालजी महाराज मेवाड़ के जैन-जगत की एक दिव्य विभूति है । पिछले ५० वर्षों से मेवाड़ में ही नहीं देश के अन्य भागों में भी पादविहार कर आपने जो जन चेतना जागृत की है वह सचमुच आदर्श है ।
गुरुदेव के शान्तिपूर्ण निर्मल व्यक्तित्व में अनूठी आमा है, चमक है ।
आज हम एक ऐसे चरित्र का अभिनन्दन कर रहे हैं जिसमें 'सादा जीवन और उच्च विचार' को सर्वदा अपने आप में चरितार्थ किया कि महाराज श्री ने अपने बाल्यकाल के १६ वर्ष की उम्र में विचार किया - संसार में अपना कोई नहीं है, आत्मा अकेली ही संसार में आयी है और अपने शुभाशुभकर्मों का फल भोगकर अन्त में अकेले ही इस संसार से चली जाती है । न कोई संसार में हितु है, न मित्र, क्यों न मानव देह जो हमें मिली है उसका सदुपयोग कर बार-बार के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने का प्रयास किया जाय। इसकी विचारधारा ने आपको संसार से विरक्त बना दिया, सांसारिक परिवार एवं सरकार का प्रबल विरोध के बावजूद भी आप अपने वैराग्य के विचार पर अटल रहे और आखिर में अपने पूज्य गुरुदेव के पास दीक्षित बन गये ।
आपका सुगठित निरोग तन, गौर वर्ण, मध्यम कद, मुस्कराता चेहरा व इस सारे देह वैभव को ज्योतिर्मय बनाते हुए उज्ज्वल ज्ञान, दर्शन और चारित्र महानता का आभास देता है ।
गुरुदेव अभी ७० वर्ष की वय में हैं किन्तु युवकों जैसा उत्साह आप में देखा जा सकता है ।
कथनी और करनी की एकरूपता ही आपका जीवन दर्शन है ।
आज के भौतिकता प्रधान वातावरण में आध्यात्मिकता की पवित्र ज्योति जगाने वाले गुरुदेव का आप और हम अभिनन्दन कर रहे हैं तो यह विश्व में तेजी से फैलती जा रही है, आसुरी वृत्तियों की तुलना में देवी वृत्तियों की श्रेष्ठता का एक प्रयत्न है ।
हमारी संस्कृति व्यक्ति के स्थान पर गुणों को अधिक महत्व देती है, यही कारण है कि हमारे यहाँ उन गुणवान् व्यक्तियों का सर्वदा सम्मान हुआ है जिन्होंने अपने जीवन को उच्च आदर्श के लिए समर्पित कर दिया ।
हमारे यहाँ मौलिक रूप से साम्प्रदायिक इकाईयों के मतभेद कुछ साधना पद्धतियों के कारण है किन्तु गुणवान व्यक्तित्व किसी भी सम्प्रदाय में विकसित हुआ है, उसको सभी ने एक मत होकर महत्त्व दिया है । हमारी संस्कृति का यही वह तत्त्व है जो अनेकता में एकता का बोध देता है ।
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