Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रधान सम्पादक श्री 'कुमुद' मुनि जी का परिचय | १६ उसी वर्ष पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज का आकोला चातुर्मास था। मुनियों के सम्पर्क ने अन्तर की वैराग्य - भावना को और बढ़ाया और दोनों भाई-बहनों ने संयम लेने का निश्चय किया ।
माता को इस निश्चय का पता लगा तो वह भी अपने आत्म-कल्याण को उत्सुक हो गई। इस तरह तीनों ने जब संयम ग्रहण करने का निश्चय किया तो पारिवारिक जनों में हलचल मच गई। उन लोगों ने कई उपद्रव खड़े कर दिये फलस्वरूप दोनों अर्थात् मां और पुत्री ने तो यथासमय संयम स्वीकार कर लिया किन्तु बालक सुजान की दीक्षा उन लोगों ने रुकवा दी ।
बालक सुजान को उनके भाई गोरीलाल जी गांधी और बहनोई श्री अम्बालाल जी अहमदाबाद जहाँ वे व्यापार करते थे ले गये ।
गुप्त - आगमन
बालक सुजान अहमदाबाद गया भी, उसने जो दृढ़ निश्चय कर रक्खा था उससे वह तिल भर भी नहीं डिगा, मात्र अवसर की तलाश में था। चौदह दिन बाद ही एक अवसर मिला कि सुजान वहाँ से बिना ही टिकट गाड़ी में बैठ गया और मारवाड़ जंक्शन तक बेरोक-टोक चला आया किन्तु मारवाड़ जंक्शन पर एक पुलिस ने चैक कर ही लिया । उसने बिना टिकट यात्रा करने वाला कोई जेबकतरा समझ कर पुलिस कम्पार्ड में बिठा दिया। वहाँ जो पुलिस सुरक्षा के लिए था वह सज्जन मिला। सुजान ने अपनी सारी कहानी उसे साफ-साफ कह दी तो उसने सहृदयता प्रकट कर अपने चंगुल से मुक्त कर दिया ।
सुजान अन्य डिब्बे में जा बैठा तो वहाँ दो सज्जन सुजान को ऐसे मिले जैसे "अंधेरे में चिराग " उन्हें ज्यों ही यह ज्ञात हुआ कि इस बच्चे के पास टिकिट नहीं है, उन्होंने सुजान को नीचे सुला कर बिस्तरों की ओट दे दी 'अहैतुकी कृपा करने वाले ऐसे सज्जन संसार में बिरले ही होते हैं ।"
इस तरह सुजान माहोली आ पहुँचा। वहाँ से फतहनगर होकर सनवाड़ चला गया। वहां के धर्मप्रेमी गुरुमंत्र श्री चांदमल जी बडाला और उनकी धर्मपत्नि दाखबाई ने बड़ा सहयोग दिया और सुजान उसी दिन शाम की गाड़ी से खेरोदा पहुँच गये जहाँ पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज आदि मुनि गण विराजमान थे ।
खेरोदा में श्री देवीलाल जी खेरोदिया का अच्छा सहयोग रहा। वहीं श्री मोडीलाल जी चवाण देलवाड़ा वाले आये हुए थे, उन्होंने बड़ी मदद की। बालक सुजान गुप्त रूप से बापड़ा एक सुधार के वहाँ एक रात ठहर कर देलवाड़ा पहुँच गया। श्री मोड़ीलाल जी के यहाँ एक दिन गुप्त निवास कर बालक सुजान 'रामा' श्रीमान् सेठ रतनलाल जी मांडोत के यहाँ पहुँच गया। श्री रतनलाल जी मांडोत धर्मप्रेमी गुरुभक्त और बड़े साहसी श्रावक थे ।
गुप्तवास और दीक्षा
श्री रतनलाल जी मांडोत ने बालक सुजान का बड़े प्रेम से स्वागत किया और सारी स्थिति समझकर उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने यहाँ रख लिया ।
भाव दीक्षित श्री सुजानमल 'रामा' (अरावली श्रेणी में बसा एक छोटा-सा ग्राम) में लगभग तीन माह एकान्तवास के रूप में रहा। श्री रतनलाल जी मांडोत और उनके सम्पूर्ण परिवार ने और रामा निवासी सज्जनों ने बड़ी आत्मीयता तथा सतर्कतापूर्वक हार्दिक सहयोग दिया।
उधर पारिवारिक जनों ने बालक सुजान को खोजने में दिन-रात एक कर दिया किन्तु उन्हें कोई भेद नहीं मिला । तीन माह बाद परिस्थितियों में कुछ परिवर्तन आया और श्री रतनलाल जी मांडोत ने गुरुदेव श्री अम्बालाल
जी महाराज आदि ठाणा को 'कडिया' ग्राम में बुलाया ।
कडिया के श्रावक भी बड़े गुरुभक्त और सेवाभावी थे । वे हार्दिक भावों से सेवा में तैयार थे ।
मुनिराजों के कडिया पहुँचने पर श्रीयुत् मांडोत साहब श्री सुजान जी को लेकर वहाँ पहुँच गये और दूसरे ही दिन बड़ी सादगी के साथ गाँव के बाहर एक विशाल वटवृक्ष के नीचे भाव दीक्षित उत्कृष्ट वैराग्यवान श्री सुजानमल जी की दीक्षा सम्पन्न हो गई।
कुछ ही दिनों में बड़े आश्चर्य के साथ मेवाड़ में श्री सुजान की दीक्षा के समाचार सुने गये ।
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