Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 643
________________ १४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट ०००००००००००० 000000000000 कोई व्यक्ति चक्रवति भी बन जाय, तो हमारे इतिहास में याद नहीं किया जाता, किन्तु हमारे त्यागी साधुसन्त जिन्होंने अपने जीवन को देश व समाज के हित में दे दिया, व्रत में लगा दिया, उसे उसके जीवन के बाद भी हमारा देश और समाज याद करता है । पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे यहाँ सन्त पूजा जाता है । हमारे यहाँ सन्तों का जीवन बहुत ऊंचा होता है, किन्तु हमें उनसे जो सुनने को मिलता है, हम जो उनका चरित्र देखते हैं, हम कितना उनका अनुकरण कर पाते हैं ? मैं एक विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि हमारे सन्तों ने कहा, सभी को जीने का अधिकार है, हम भी जिएँ पड़ोसी भी जिएँ' यह एक बहुत उत्तम सिद्धान्त है, किन्तु मैं समझता हूँ कि हम इसे अभी तक अपना नहीं सके । यदि आप और हम दूसरों की जिन्दगी खराब करके आराम की जिन्दगी बिताने की कोशिश करें तो मैं मानता हूं कि समाज में एक दिन संघर्ष उपस्थित हो जाएगा और समाज टूटेगा। इतिहास को उठाकर देखिये, वही समाज श्रेष्ठ रहा । जहाँ व्यक्ति स्वयं अपने तक ही नहीं प्रत्येक व्यक्ति के हित को भी सोचता है, राष्ट्र के हित का चिन्तन करता है। युग का निर्माण समाज करता है । समाज व्यक्ति बनाता है । आज के सन्दर्भ में किसी भी पहलू से सोचें बहुत-सी विकृतियों का मूल कारण व्यक्ति का स्वयंनिष्ठ होना है । स्वयंनिष्ठ होना ही स्वार्थ है, स्वार्थ के परित्याग के लिए हमारे मुनि कई बार कहते हैं । मैं कई बार जैन मुनियों के प्रवचनों को सुनता हूँ, वे बहुत कुछ कहते हैं और साफ-साफ कहते हैं । किन्तु समाज कितना बदल रहा है, यह हमें गहराई से सोचना चाहिए। एक महापुरुष की स्वर्ण जयन्ति मनाने को आप और हम यहाँ उपस्थित हैं इस अवसर पर यह प्रतिज्ञा करके उठना चाहिए कि सम्यक् भाव, सम्यक् वाणी और सम्यक् आचार बनाने का प्रयत्न करेंगे। आज आप और हम एक स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं। आजादी से पूर्व तो हम आजाद होने के लिए पूज्य गांधीजी के नेतृत्व में लड़ते रहे और जब आजाद हो गये तो, हमने गरीबों को ऊपर उठाने की नीति घोषित की थी गरीबी हमारे देश का अभिशाप है किन्तु गरीबी कोई पुराना कपड़ा तो नहीं, जिसे उतार दिया जाए और नया धारण कर लिया जाए। गरीबी से समृद्धि तक की यात्रा एक कठिन यात्रा है, श्रम और सहयोग से ही हम इस यात्रा को तय कर सकेंगे । गरीब को ऊँचा उठाने के लिए बढ़े हुए लोगों को कुछ नीचे लाना होगा, तभी गरीब ऊँचा उठ सकेगा । पिछले सत्ताइस-अट्ठाइस वर्ष से सरकार ने कई बड़े कार्य किये, फिर भी हर व्यक्ति हुकूमत से बहुत कुछ चाहता है, इस पर वाद-विवाद चलता है। हमारे यहाँ प्रजातन्त्र है सभी के विचारों का महत्त्व है किन्तु साथ में यह भी सोचना आवश्यक है कि देश की वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में हमारा क्या कर्त्तव्य है। जब स्वतन्त्र देश का नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को भूलने लगता है, देश और सरकार के सामने बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती है ऐसे ही कुछ कठिन दौर से आजकल हम गुजर रहे हैं । आज सबसे बड़ी आवश्यकता आत्म-निरीक्षण की है। आप अधिकतर व्यापारी हैं और मेरा विभाग व्यापारियों से सम्बन्ध रखता है। आज फसलें अच्छी हैं सब कुछ ठीक है, किन्तु साल भर पूर्व क्या स्थिति थी ! आप सभी जानते हैं, बड़ा अभाव था किन्तु व्यापारी वर्ग ने उस समय कितना सहयोग किया ? कठिनाई की घड़ियों में देश की मदद नहीं करे वह देश का वफादार नहीं है। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि यदि मेरे पास एक रोटी है, उसमें से एक टुकड़ा पड़ोसी को देकर जिन्दा रख दूं यदि ऐसी भावना बन जाए तो देश की सारी कठिनाइयाँ एक प्रकार से समाप्त हो गई। व्यापार करना बुरी बात नहीं, कोई पैदा करता है, कोई वितरण करता है किन्तु उसमें ईमानदारी हो, इस तरह व्यापारी कमाई भी कर सकता है और देश सेवा भी। __ हमारे देश की प्रधानमन्त्री जोकि साठ करोड़ जनता की ही नहीं विकासोन्मुख सभी राष्टों की नेता है, O0 Education Intemational For Private & Personal Use www.jainelibrary.org

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