Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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पुण्य भी मानली स्वामी विरचित पुण्य भी नृसिंहदासजी महाराज के गुण | ५५१
बुहा
भणे गुणे बुधवंत थया जोवन वय में आय वेपार वणज करे घणो रह्या परम सुखमाय ॥१॥
परण्या एकज कामणी सुख दिलसे संसार । धर्म ध्यान हिये सीखिया जाप्यो अधिर संसार ॥२॥
ढाल - हरणी जो चरे ललणा ॥ एदेशी ||
1
पूज श्री रोहीदास जी ललगा ललगा हो । सकल गुणां री खान । पूजजी वारू रे ललणां जिन मारग दीपावता ल०
नर
अहंकारी नर मान |०||१|| भव जीवाँ ने तारता ल० करता पर उपकार |०| परिसा रो अधिकार छे ल० दूजी ढाल में द्वार |०|| २ || संखेपे कर वरणव्यो ल० गुण बहुला छे तास । पू० एक जिभ्या किम वरणं ल० गावंता सुख बिसाल | १०||३|| विचरत विचरत आविया ल० लावा ग्राम ते मांय पू०
श्रावक श्राविका अति घणां ल० विनवे सहु नर नार | पू०|| ४ ||
चोमासो पुजजी याँ करो ल० विनती करे रसाल । पू०| विनती मान तिहाँ रह्या ल० करे उपकार विसाल | १०||५| भीलोड़ा सूं पदारिया ल० आया लावा ग्राम ने माँय । पू०| पोसा पड़िक्कमणां करे ल० भेट्या श्री पुजजी ना पाय | पू०||६|| वेराग में चित्त लाय । पू०| जिम मनड़ो सुख पाय | पू०॥७॥ ल० बोल्या अमृत वाण । पू०| दिख्या नो अधिकार | १०||८||
उपदेश सुणियां थका ल० दिख्या तो लेसूं हूँ सही ल० जिम सुख होवे तिम करो रिष मानमल इण पर कहे ल०
दोहा
पाछे दोघी आगन्या हुआ हर्ष श्राविका थापी बेनड़ी बाप भाइ आवी करी पाखे दीधी आगन्या
पाछे आवे असत्तरी क्लेश कीधो आण । श्रावक श्राविका समझाये तब वचन कियो परमाण || १ || हर्ष अपार । पहुँचावण अधिकार || २ || कीधो क्लेश एम । राखी बहुलो प्रेम ॥३॥
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